इंदिरा ने करुणानिधि को बता रखा था पूरा प्लान, DMK बेवजह हुई लाल
Katchatheevu Island Controversy: कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को सौंपने के लिए 1974 में इंदिरा गांधी गवर्नमेंट को खासा विरोध झेलना पड़ा था। 23 जुलाई, 1974 को तत्कालीन विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह ने भारत-श्रीलंका के बीच हुए समझौते की जानकारी संसद को दी थी। उससे ठीक पहले, डीएमके सांसद एरा सेझियान ने गरजते हुए बोला था, ‘यह समझौता राष्ट्र भलाई के विरुद्ध है।‘ सेझियान का बोलना था कि ‘नियमों को ताक पर रखते हुए हमारा क्षेत्र सरेंडर किया जा रहा है’। सेझियान का इल्जाम था कि इस ‘अपवित्र’ समझौते की भनक न तो संसद को, न ही तमिलनाडु गवर्नमेंट को लगने दी गई थी। संसद में डीएमके सांसद का यह दावा हकीकत से परे था। एरा सेझियान को शायद पता नहीं था कि तमिलनाडु के तत्कालीन सीएम और डीएमके नेता एम। करुणानिधि इस समझौते को महीने भर पहले ही ग्रीन सिग्नल दे चुके थे। पीएम और एक-दो सीनियर कैबिनेट मंत्रियों को छोड़कर करुणानिधि शायद इकलौते ऐसे नेता थे जिन्हें समझौते के बारे में पता था।
श्रीलंका संग डील से पहले करुणानिधि से मिले थे इंदिरा के ‘दूत’
तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष के। अन्नामलाई ने RTI के जरिए विदेश मंत्रालय से उस दौर के दस्तावेज जुटाए हैं। इनसे पता चलता है कि 19 जून, 1974 को तत्कालीन विदेश सचिव सिर्फ़ सिंह ने हिस्टोरिकल डिवीजन के डायरेक्टर बीके बासु के साथ करुणानिधि से मुलाकात की थी। मद्रास (अब तमिलनाडु) मुख्यमंत्री को श्रीलंका के साथ होने वाली डील के बारे में कहा गया था और उनकी ‘हामी’ भी ली गई थी। दस्तावेजों के मुताबिक, बैठक घंटे भर से ज्यादा चली थी। करुणानिधि के साथ उनके मुख्य सचिव पी सबानयगम और गृह सचिव एसपी एम्ब्रोस भी उपस्थित थे।
रिकॉर्ड्स के मुताबिक, ‘प्रस्ताव पर मुख्यमंत्री ने संकेत दिया कि वह सुझाए गए हल को मानने के इच्छुक हैं।‘ RTI से यह भी पता चलता है कि करुणानिधि को समझौते की समाचार काफी पहले से थे। केंद्र गवर्नमेंट के बड़े-बड़े मंत्रियों और कांग्रेस पार्टी के सीनियर नेताओं को भी इसके बारे में नहीं पता था।
पब्लिक भड़क उठेगी, करुणानिधि को था अंदाजा
करुणानिधि को अहसास हो चला था कि समझौते की जानकारी बाहर आने पर पब्लिक नाराज हो जाएगी। इसके बावजूद, उन्होंने वादा किया था कि माहौल को ज्यादा गर्म नहीं होने देंगे। RTI से हाथ लगे दस्तावेजों के मुताबिक, ‘मुख्यमंत्री ने बोला कि साफ सियासी कारणों से, उनसे इसके पक्ष में सार्वजनिक रुख अपनाने की आशा नहीं की जा सकती। हालांकि, सीएम ने विदेश सचिव को आश्वासन दिया कि वह प्रतिक्रिया को कम रखने में सहायता करेंगे और इसे तूल नहीं देने देंगे।‘
विदेश सचिव ने भी बोला कि कुछ ऐसा नहीं किया जाना चाहिए जिससे केंद्र गवर्नमेंट को शर्मिंदा होना पड़े। विदेश सचिव ने यह भी दोहराया कि तमिलनाडु गवर्नमेंट को श्रीलंका के साथ चली वार्ता के हर लेवल पर शामिल किया गया था। एक मौके पर करुणानिधि ने यह भी जानना चाहा था कि क्या समझौते को एक-दो वर्ष के लिए टाला जा सकता है। हालांकि उन्होंने इसके लिए अधिक बल नहीं लगाया।
इस पूरे घटनाक्रम से अनजान रहे सेझियान और अन्य डीएमके सांसदों ने विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह को घेरने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। DMK के एक और सांसद जी। विश्वनाथन ने पीएम का नाम लेते हुए बोला था कि ‘न तो राज्य गवर्नमेंट से राय ली गई, न ही संसद को भरोसे में लिया गया।‘ डीएमके को तमिलनाडु के अन्य दलों का भी साथ मिला था।