उत्तर प्रदेश

जानें मुख्तार अंसारी कैसे राजनीति में भी पड़ा भारी…

Mukhtar Ansari Death: यूपी के कारावास में बंद गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी की गुरुवार को दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई. उनकी मृत्यु के बाद पूरे यूपी में सुरक्षा प्रबंध कठोर कर दी गई है. पुलिस का पहरा बढ़ा दिया गया है. मुख्तार के भाई अफजल अंसारी ने मंगलवार को इल्जाम लगाया कि उन्हें कारावास में धीमा जहर दिया गया. हालांकि ऑफिसरों ने इस इल्जाम से इनकार किया है. अंसारी की मृत्यु को लेकर बवाल इसलिए भी बरपा है कि एक दौर था जब क्राइम से लेकर राजनीति तक में उनकी धमक हुआ करती थी. आइए उनके राजनीतिक यात्रा पर एक नजर डालते हैं.

1952 के बाद से यूपी के मऊ सीट से कोई भी लगातार दूसरी बार चुनाव नहीं जीता, लेकिन मुख्तार अंसारी ने 1996 से लगातार पांच बार सीट जीतकर इस मिथक को तोड़ दिया. उसने दो बार बसपा के उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की थी. उन्होंने अंतिम बार 2017 में विधानसभा चुनाव लड़ा था. विभिन्न आपराधिक मामलों में 2005 से कारावास में बंद मुख्तार अंसारी को यूपी गवर्नमेंट द्वारा पंजाब से बांदा कारावास लाया गया था. मुख्तार के विरुद्ध 60 से अधिक आपराधिक मुद्दे लंबित थे. उन्हें यूपी की विभिन्न अदालतों द्वारा सितंबर 2022 से आठ मामलों में सजा सुनाई गई थी.

अप्रैल 2023 में मुख्तार अंसारी को बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की मर्डर के लिए गुनेहगार ठहराया गया और 10 वर्ष कैद की सजा सुनाई गई. 1990 में हथियार लाइसेंस प्राप्त करने के लिए जाली दस्तावेजों के इस्तेमाल से संबंधित एक मुद्दे में उन्हें 13 मार्च 2024 को जीवन भर जेल की सजा सुनाई गई थी. मऊ के रहने वाले इस गैंगस्टर का गाजीपुर और वाराणसी जिलों में भी अच्छा असर माना जाता था. उनका नाम पिछले वर्ष यूपी पुलिस द्वारा जारी 66 गैंगस्टरों की सूची में था.

1990 में गाजीपुर जिले के अनेक सरकारी ठेकों पर ब्रजेश सिंह गैंग ने कब्जा प्रारम्भ कर दिया. अपने काम को बनाए रखने के लिए मुख्तार अंसारी के रैकेट से उनका सामना हुआ था. यहीं से ब्रजेश सिंह के साथ इनकी दुश्मनी प्रारम्भ हो गई थी.

1991 में चंदौली में मुख्तार पुलिस की पकड़ में आए थे, लेकिन इल्जाम है कि रास्ते में दो पुलिसकर्मियों को गोली मारकर वो फरार हो गया था.इसके बाद सरकारी ठेके, शराब के ठेके, कोयला के काले कारोबार को बाहर रहकर हैंडल करना प्रारम्भ कर दिया था.

1996 में एएसपी उदय शंकर पर जानलेवा हमले में उसका नाम एक बार फिर सुर्खियों में आया था. 1996 में मुख्तार पहली बार एमएलए बना था. ब्रजेश सिंह की सत्ता को हिलाना प्रारम्भ कर दिया था.

1997 में पूर्वांचल के सबसे बड़े कोयला व्यवसायी रुंगटा के किडनैपिंग के बाद उसका नाम अपराध की दुनिया में राष्ट्र में छा गया था. इल्जाम है कि 2002 में ब्रजेश सिंह ने मुख्तार अंसारी के काफिले पर धावा कराया. इसमें मुख्तार के तीन लोग मारे गए थे. ब्रजेश सिंह घायल हो गए.

2005 से कारावास में था बंद
अक्टूबर 2005 में मऊ जिले में अत्याचार भड़की. इसके बाद उस पर कई इल्जाम लगे थे, हालांकि वे सभी खारिज हो गए थे. उसी दौरान उसने सेरेण्डर कर दिया था, तभी से वह कारावास में बंद था. इसी दौरान कृष्णानंद राय से मुख्तार के भाई अफजल अंसारी चुनाव हार गए. मुख्तार पर इल्जाम था कि उन्होंने शार्प शूटर मुन्ना बजरंगी और अतिकुर्रह्मान उर्फ बाबू की सहायता से 5 साथियों सहित कृष्णानंद राय की मर्डर करवा दी थी. मौर्य, मन्नत सिंह नामक एक क्षेत्रीय ठेकेदार की मर्डर का गवाह था.

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