उत्तर प्रदेश

2019 के मुकाबले कम मतदान ने बढ़ाई दलों-उम्‍मीदवारों की चिंता

Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण से बेहतर उत्साह बरेली-आंवला और बदायूं लोकसभा सीट नजर आया. हालांकि 2019 के चुनाव के मुकाबले बरेली-आंवला और बदायूं सीट पर कम मतदान हुआ. कम मतदान ने सियासी दलों की चिंता जरूर बढ़ा दी. हालांकि तपती गर्मी को मतदान में आंशिक गिरावट के लिए उत्तरदायी बताया जा रहा है. मतदान के घटे ग्राफ का असर उम्मीदवारों की हार-जीत के अंतर को कम कर सकता है. हालांकि हिन्दू और मुसलमान बाहुल्य बूथों पर समान तौर पर मतदान कम होने से सियासी भिन्न-भिन्न मतलब निकाल रहे हैं

मंगलवार को सुबह 7 बजे बरेली-आंवला और बदायूं सीट पर मतदान प्रारम्भ हुआ था. मतदान की शुरूआत से ही वोटरों में उत्साह की कमी साफ दिखाई दी. हिन्दु-मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर मतदाताओं की नीरसता साफ दिखाई दी. 2019 में बरेली में 59.34, आंवला में 58.81 और बदायूं में 57.15 प्रतिशत मतदान हुआ था. इस बार अनेक प्रयास के बाद भी मतदाताओं ने वोटिंग को लेकर पहले जैसा उत्साह नहीं दिखाया. मंगलवार शाम छह बजे तक बरेली में 57.88, आंवला में 57.08 और बदायूं में 54.05 प्रतिशत मतदान हुआ. बरेली में 1.46, आंवला में 1.73 और बदायूं में 3.1 प्रतिशत मतदान में गिरावट दर्ज की गई है. सभी बूथों पर करीब-करीब एकसा ही ट्रेंड नजर आया. तीनों लोकसभा सीटों पर मुसलमान बूथों पर मतदाताओं में उत्साह पहले जैसा नहीं था.

मतदान का ग्राफ गिरने से असर उम्मीदवारों की हार जीत पर पड़ना तय है. 2019 में बरेली-आंवला और बदायूं लोकसभा सीट पर बीजेपी ने कब्जा किया था. बरेली सीट को बीजेपी का मजबूत किला माना जाता है. इस सीट पर बीजेपी के संतोष गंगवार सांसद रह चुके हैं. जबकि आंवला सीट पर 10 वर्ष से बीजेपी के धर्मेंद्र कश्यप सांसद हैं. बदायूं सीट 2019 में बीजेपी ने समाजवादी पार्टी से छीनी थी. 2019 में बरेली में 167282, आंवला में 113743 और बदायूं में 18454 वोटों से बीजेपी उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी. इस बार 2019 के मुकाबले से वोट कम पड़े हैं. बदायूं में सबसे अधिक मतदान में गिरावट आई है. जो मुकाबले को बहुत नजदीकी बना सकता है. बरेली और आंवला लोकसभा सीट पर भी हार-जीत का अंतर होना तय बताया जा रहा है.

दलित मतदाताओं के बंटने से उलझे समीकरण 
बरेली-आंवला और बदायूं लोकसभा सीट पर दलित मतदताओं ने एकतरफा मतदान करते नजर नहीं आ रहे हैं. बरेली में बीएसपी का उम्मीदवार नहीं था. जिसकी वजह से दलित मतदाता बीजेपी और समाजवादी पार्टी में बंटा है. आंवला और बदायूं में बीएसपी के प्रत्याशी जरूर थे. इसके बाद भी दलित वोट बंटा है. तीन लोकसभा सीटों में करीब दो-दो लाख मतदाता हैं.

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