2800 किलोमीटर की दूरी तय कर तमिलनाडु और पुडुचेरी से 50 सदस्यीय टीम पहुंची उत्तराखंड
श्रीनगर गढ़वाल.2800 किलोमीटर की दूरी तय कर तमिलनाडु और पुडुचेरी से 50 सदस्यीय टीम उत्तराखंड पहुंची है. ये लोग आने वाले एक सप्ताह तक उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों का भ्रमण करेंगे और यहां की लोक संस्कृति, सांस्कृतिक धरोहरों समेत उच्च हिमालय में मिलने वाले बेशकीमती जड़ी-बूटियों के बारे में जानकारी लेंगे. हिंदुस्तान विविधता में एकता का राष्ट्र है. यहां के प्रत्येक राज्य का अपना एक अनूठा कल्चर है, जिसे अन्य राज्यों तक पहुंचाने के लिए हिंदुस्तान गवर्नमेंट द्वारा ‘एक हिंदुस्तान श्रेष्ठ भारत’ अभियान चलाया जा रहा है, जिससे कि अन्य राज्यों में रहने वाले लोग भी एक दूसरे के कल्चर और परंपराओं को जान और समझ सकें. इस अभियान के अनुसार तमिलनाडु और पुडुचेरी से 50 डेलीगेट्स की टीम उत्तराखंड के श्रीनगर गढ़वाल पहुंच चुकी है. ये उत्तराखंड के गौरवशाली इतिहास, सांस्कृतिक धरोहरों से रूबरू होने के साथ यहां प्रौद्योगिकी की मिसाल एशिया के सबसे ऊंचे टिहरी बांध का भी दीदार करेंगे.
युवा संगम के कोर्डिनेटर प्रोफेसर जेपी भट्ट मीडिया को जानकारी देते हुए बताते हैं कि एचएनबी गढ़वाल यूनिवर्सिटी और आईआईआईटी त्रिची के बीच ‘एक हिंदुस्तान श्रेष्ठ भारत’ अभियान के अनुसार परस्पर संवाद के लिए यह कार्यक्रम आयोजित किया गया है. इससे पहले उत्तराखंड से एक टीम तमिलनाडु गई थी और वहां के कल्चर को देखा था. अब तमिलनाडु से टीम उत्तराखंड पहुंची है. इसमें कुल 50 लोग शामिल हैं. परंपरा, पर्यटन, प्रौद्योगिकी, पारस्परिक सहयोग, प्रगति के उद्देश्य के यह यात्रा प्रारम्भ हुई है.
इन जगहों का करेंगे भ्रमण
डॉ भट्ट जानकारी देते हुए बताते हैं कि अभियान के अनुसार तमिलनाडु से आए डेलीगेट्स चारों धामों की रक्षक देवी धारी देवी के दर्शन के साथ अपनी यात्रा प्रारम्भ करेंगे. इसके बाद ओंकारेश्वर मंदिर, तुंगनाथ चोपता स्थित हेप्रेक के रिसर्च सेंटर में भी 50 सदस्यीय दल पहुंचेगा, जहां वे हिमालय की बेशकीमती जड़ी-बूटियों के बारे में जानकारी ले पाएंगे. वहीं इसके साथ देहरादून के कई मशहूर स्थलों, उत्तरकाशी टिहरी के ऐतिहासिक स्थानों के साथ टेक्नोलॉजी की मिसाल टिहरी बांध को भी करीब से देख पाएंगे.
पहली बार देखा पहाड़
तमिलनाडु से पहुंची सिमी राज मीडिया को बताती हैं कि वह अपनी इस यात्रा को लेकर काफी उत्सुक हैं. वे समुद्र के किनारे रहने वाले लोग हैं और पहली बार पहाड़ों को देखने का मौका मिला है. वह बताती हैं कि उत्तराखंड की संस्कृति, सभ्यता उन्हें काफी आकर्षित कर रही है. तमिलनाडु में भी मिली जुली शैली के ईश्वरीय नृत्य हैं जैसे उत्तराखंड में. इस तरह के अभियान दूसरे राज्य के कल्चर को करीब से जानने का सुनहरा अवसर प्रदान करते हैं.