उत्तराखण्ड

Election 2024: जानिए, चुनाव में किन्नरों की भूमिका और उम्मीदें

उत्तराखंड में 19 अप्रैल को पहले चरण में पांचों लोस सीटों पर मतदान है. आम चुनाव में एक-एक वोट का महत्व है. चुनाव आयोग से लेकर सियासी दलों के प्रतिनिधि हर वर्ग, धर्म, जाति और उम्र के वोटरों को मतदान के लिए प्रेरित कर रहे हैं. जागरूकता अभियान चला रहे हैं. लोकतंत्र के इस महापर्व में यदि कहीं किसी वोटर की चर्चा नहीं हो रही है, तो वह ट्रांसजेंडर (किन्नर) मतदाता हैं. किन्नर का वोट भी सामान्य वोटर की तरह गवर्नमेंट बनाने में किरदार निभाता है. उत्तराखंड में 297 किन्नर मतदाता हैं. किन्नर गवर्नमेंट से क्या चाहते हैं? किन्नर अखाड़ा परिषद की आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी से मीडिया की खास बातचीत.

1. समाज में किन्नरों की क्या किरदार है ?

किन्नर भी आदमी हैं. सामाजिक भेदभाव से किन्नर हाशिये पर हैं. उनको तिरस्कार झेलना पड़ता है. बदलते समय के साथ कुछ लोगों का नजरिया उनके प्रति बदला है. खासकर 2021 में हरिद्वार कुंभ मेले में किन्नर अखाड़ा के शाही स्नान और पेशवाई में लोगों ने किन्नरों को बहुत करीब से देखा और समझा है. इससे लोगों में किन्नरों के प्रति भ्रांतियां कम हुई हैं. अधिकांश लोगों की सोच अभी बदलनी बाकी है.

2. गवर्नमेंट और सियासी दलों का किन्नरों के प्रति क्या नजरिया है?सुप्रीम न्यायालय ने किन्नरों को थर्ड जेंडर के रूप में मान्यता दी है. लोकतंत्र में एक आम वोटर की तरह मतदान का अधिकार मिला है. किन्नर गवर्नमेंट चुनने में अपनी किरदार निभाते हैं. कोई भी दल वोट मांगने उनके पास नहीं आता है. किन्नर सजग नागरिक की किरदार निभाते स्वयं वोट डालने जाते हैं. सरकारों की नजर में किन्नर उपेक्षित हैं. हालांकि, गवर्नमेंट ने किन्नरों को कुछ अधिकार जरूर दिए हैं, लेकिन धरातल में उनको लागू नहीं किया जाता है.

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