कोटा बूंदी के पहाड़ी क्षेत्र में ये शैलचित्र हजारों साल पहले सभ्यता के है निशान
कोटा। सिंधु घाटी सभ्यता या उसकी समकालीन विश्व की अन्य सभ्यताओं के बारे में तो हम काफी जानते हैं। उनके बारे में पढ़ते सुनते रहते हैं। लेकिन राजस्थान के कोटा में मिले शैल चित्रों के बारे में शायद कम ही लोग जानते होंगे। यहां हजारों वर्ष पुराने शैल चित्रों का खजाना है। कहते हैं ये सिंधु घाटी सभ्यता से भी पहले के हैं। इनमें 35 किमी लंबी रॉक पेंटिंग भी शामिल है।
आदि मानव के बारे में आपने पुस्तकों में पढ़ा होगा या दादी नानी के किस्सों में सुना होगा। लेकिन आज हम आपको राजस्थान के कोटा बूंदी के पहाड़ी क्षेत्र में ऐसे शैलचित्र के बारे में बताने जा रहे हैं, जो हजारों वर्ष पहले की सभ्यता के निशान के रूप में उपस्थित हैं। यह शैलचित्र बूंदी भीमलत के पठार क्षेत्र के अनेक जंगलों में आज भी उपस्थित हैं। इसकी खोज ओम प्रकाश कुक्की ने की थी।
35 किलोमीटर लंबी रॉक पेंटिंग
ओम प्रकाश कुक्की ने कहा कोटा बूंदी के जंगलों में आज भी कई जगहों पर यह प्राचीन साक्ष्य उपस्थित हैं। उन्होंने क्षेत्र में अनेक स्थानों से पुरातत्व चिन्हों को खोज निकाला है। भीमलत साइट राजस्थान के बूंदी-भीलवाड़ा-टोंक क्षेत्र में उपस्थित 100 से अधिक रॉक पेंटिंग स्थलों में से एक है। कुक्की ने कहा उन्होंने 8वीं कक्षा की पढ़ाई छोड़ने के बाद इस जगह को खोजा था। उन्होंने 35 किलोमीटर सबसे लंबी रॉक पेंटिंग की भी खोज की है। भीमलत के पहाड़ी क्षेत्र से लेकर 35 किलोमीटर तक ये सबसे लंबा शैल चित्र है। कुक्की का आंकलन बताता है इन रॉक पेंटिंग्स को हजारों साल पूर्व आदि मानव ने बनाया है। इन चित्रों में आदिमानव शेर का शिकार करते हुए नजर आ रहे है।
शैल – चित्रों की 102 साइट्स
ओम प्रकाश कुक्की ने अक्टूबर 1997 में रामेश्वर महादेव के झरने के ऊपर पहाड़ पर पहली बार शैल चित्रों की खोज की। इसके बाद 12 जून 1998 में गरदडा ग्राम के शैल-चित्रों की खोज की। विश्व की सबसे लम्बी एवं बड़ी शैल चित्र जो रेवा, छाजा, मांगली नदी के दांए एवं बांए कगारों में हैं खोज निकाले। यह शैल चित्र श्रृंखला, बिजोलियां के पठारों से लेकर बूंदी जिले के बाकी गांव तक हैं। इसकी लम्बाई 35 से 40 किलोमीटर है और अब तक विश्व की सबसे लंबी शैल-चित्र श्रृंखला है। कुक्की का दावा है इन्होंने शैल – चित्रों की 102 साइट्स खोजी हैं जो हिंदुस्तान में सर्वाधिक हैं।
पॉलिश दार मिट्टी के बर्तन
ओम प्रकाश ने कहा बूंदी के नमना गांव में ताम्र उपकरणों एवं टेराकोटा मृदा के खिलौनों , लाल माले, पालिश दार मृद भाड़ मिले। इन वस्तुओं को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग जनपथ, नयी दिल्ली में डी। जे। कार्यालय से सर्टिफाई करवाया। ये वस्तुएं ताम्र पाषाण कालीन सभ्यता की हैं जो हड़प्पा एवं मोहन जोदड़ो से भी प्राचीन हैं। यह इनकी जरूरी खोज सिद्ध हुई। अब तक, यह बोला जाता है कुछ चित्र 15000 वर्ष से भी पहले के युग के हैं। ये शैल चित्र मुख्य रूप से पहाड़ी चोटियों, चट्टानों की गुफ़ाओं और चंबल नदी के किनारे छोटी गुफाओं में पाए जाते हैं।
पेंटिंग्स की खासियत
पुरातत्वविद कहते हैं आदिमानव द्वारा छोड़ी गई ये सबसे बड़ी संपत्ति है। पेंटिंग्स में ज्यादातर सामाजिक गतिविधियों जैसे शिकार और समूह गतिविधियों – नृत्य, दिन-प्रतिदिन की गतिविधि का चित्रण है। इन्हें देखकर बोला जा सकता है आदि मानव समुदाय और समूह गतिविधियों के महत्व पर बल देते थे। उस समय के लोगों के जीवन में जानवरों की जरूरी किरदार थी। इन शैल चित्रों में मानव आकृतियों की तुलना में पशु आकृतियाँ अधिक हैं। प्रारंभिक मनुष्य खानाबदोश प्रकृति का था। इसका अर्थ वो भोजन की तलाश में एक से दूसरे जगह पर जरूर जाता होगा। इस प्रकार उसे शिकारी जानवरों से स्वयं को सुरक्षित रखना पड़ता था। साथ ही जंगली फल/पौधों के अतिरिक्त जानवर उनके भोजन का मुख्य साधन थे।