बिहार

बिहार में पहले फेज की चारों सीटों पर भारी NDA

जमुई में बिहार के पूर्व डिप्टी मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने बोला कि एनडीए धनबल की पार्टी है, लेकिन हम जनबल की पार्टी के लोग हैं. वे तलवार बांटते हैं और हम लोग कलम बांटने वाले हैं. बीजेपी के लोगों ने जमुई को प्रयोगशाला बना दिया है. बीजेपी के लोगों ने हमेशा यहां पर बाहरी लोगों को टिकट देने का काम किया.

इससे जरा हटकर देखें तो जमुई के अभिषेक शर्मा कहते हैं- ‘ जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे.’ जमुई के ही रहने वाले ठेकेदार मंटू कुमार शर्मा कहते हैं- ‘हमारी नजर में मामला क्या रहेगा. केंद्र में नरेंद्र मोदी की गवर्नमेंट तो बढ़िया काम कर रही है. केंद्र में तो उन्हीं की गवर्नमेंट रहनी चाहिए. बिहार में जो चल रहा है, वो चलता रहे. मगर, केंद्र की गद्दी पर मोदी जी को ही रहना चाहिए.

गया के मिथुन कहते हैं कि जो विकास किया है, उसको वोट मिलेगा. बिहार में 17 साल से नीतीश कुमार गवर्नमेंट में है, लेकिन 17 महीने में तेजस्वी यादव ने इतनी जॉब दी.

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने घोषणा पत्र को बदलाव पत्र नाम दिया है. इसमें एक करोड़ जॉब देने का वादा किया है.

लोगों से बात करने के दौरान एक ही बात समझ में आती है कि इस चुनाव में मोदी और राम मंदिर बिहार में बड़ा फैक्टर है. दूसरा फैक्टर- जाति है. इस समीकरण को साधने वाले मजबूत स्थिति में हैं. पांच किलो अनाज और किसान सम्मान निधि योजना से एक बड़ा वर्ग प्रभावित है. वहीं, एक दूसरा भी वर्ग है, जो तेजस्वी के जॉब देने की बात पर खुश नजर आता है.

बिहार में पहले फेज में मगध की जमुई, औरंगाबाद, नवादा और गया में 19 अप्रैल को वोटिंग है. इन चारों सीटों पर हवा का रुख जानने के लिए मीडिया की टीम ग्राउंड पर पहुंची. नेताओं, आम जनता और एक्सपर्ट्स से बात की.

1- पहले फेज के चुनाव में इंडी ब्लॉक की तरफ से केवल आरेजडी नेता और पूर्व डिप्टी मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ही कमान संभाले हैं. लालू उम्र की वजह से प्रचार में सक्रिय नहीं हैं. अब तक कांग्रेस पार्टी के राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे समेत कोई बड़ा चेहरा सामने नहीं आया.

वहीं, प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनाव की घोषणा होने के बाद से जमुई, नवादा, गया सीट पर जनसभा की है. चुनाव घोषणा से पहले औरंगाबाद में भी सभा कर चुके हैं. अमित शाह, राजनाथ सिंह, योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, चिराग पासवान जैसे स्टार प्रचारक भी बिहार आ चुके हैं.

2- औरंगाबाद, नवादा में एनडीए मजबूत स्थिति में है. जमुई में भी एनडीए आरजेडी पर भारी है. गया की स्थिति इन तीनों के मुकाबले एनडीए के लिए अधिक मजबूत नहीं है. इसकी वजह राम पर यहां से चुनाव लड़ रहे पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की टिप्पणी.

3- तेजस्वी यादव के डिप्टी मुख्यमंत्री रहते राज्य में नौकरियां मिलने से लोग प्रभावित दिखते हैं. खास कर युवा वर्ग. वो खुलकर तेजस्वी यादव का सपोर्ट करते हैं. हालांकि, केंद्र गवर्नमेंट की बात आती है तो अधिकांश मोदी को देखना पसंद करते हैं.

4- मोदी की डायरेक्ट हिट करने वाली योजनाओं पर लोग बात करते हैं. गरीबों के लिए 5 किलो अनाज, आयुष्मान और किसान सम्मान निधि योजना पर लोग चर्चा करते हैं. इससे लोगों को सीधे लाभ पहुंच रहा है. इन्हें एनडीए ने खूब अच्छी तरह से भुनाया है. यानी भाजपा पिछली बार वाला ही रिकॉर्ड दोहराने की तरफ बढ़ रही है.

गया सीट- हार-जीत का मार्जिन बड़ा नहीं

गया में हार-जीत का मार्जिन बड़ा नहीं होगा. जीतन राम मांझी की स्थिति बेहतर दिख रही है, लेकिन रास्ता सरल नहीं है. इसकी वजह मांझी ही हैं. पूर्व में उनके राम पर बयान कारण बताया जा रहा है. यह बात भाजपा भी समझती है. यही वजह है कि पीएम मोदी को यहां सभा करनी पड़ी है. सवर्ण और ओबीसी वोटर्स को साधने के लिए उन्हें बोलना पड़ा- गया से जीतन राम मांझी नहीं, मैं चुनाव लड़ रहा हूं.

यहां से आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे पूर्व मंत्री कुमार सर्वजीत MY समीकरण और अपने जाति के वोट के भरोसे हैं. उनकी सबसे बड़ी ताकत लालू यादव हैं, लेकिन आरजेडी सुप्रीमो एक बार भी यहां नहीं आए हैं. यदि गठबंधन के बड़े नेता आते तो माहौल कुछ और होता.

गया में पीएम मोदी ने 16 अप्रैल की सभा में कहा- गया से मांझी नहीं, मैं चुनाव लड़ रहा हूं. इसके पहले पीएम गया से लगी सीट औरंगाबाद में भी आए थे.

यहां चुनाव में सबसे बड़ी किरदार मांझी समाज ही निभाता रहा है. 20 वर्ष में मांझी जाति से ही सांसद हुए. गया लोकसभा में यादव 16 से 18 फीसदी, मुस्लिम 12-13 फीसदी, अतिपिछड़ा 30 (इसमें सबसे अधिक 60 से 70 प्रतिशत जनसंख्या मांझी जाति के हैं), सवर्ण 10 प्रतिशत हैं.

गया के जट्ठू मांझी कहते हैं- ‘सभी लोग अपनी जाति के लिए ही मर रहे हैं तो हम लोग भी जात वाले को वोट देंगे. कोई वादा पूरा नहीं करता है. जाति देखकर ही वोट करेंगे, चाहे वो विकास करे या ना करे. विकास का वादा देखकर वोट करके देख लिए.

औरंगाबाद लोकसभा सीट राजपूतों की प्रतिष्ठा वाली सीट बन गई है. इस सीट पर पहले लोकसभा चुनाव से लेकर 2019 के लोकसभा चुनाव तक राजपूतों का कब्जा रहा है. दो परिवारों के बीच रही लोकसभा सीट इस बार चुनौतियों के बीच फंसी है. औरंगाबाद को मिनी चित्तौड़गढ़ बोला जाता है, क्योंकि यहां 2.25 लाख राजपूत वोटर्स निर्णायक होते हैं.

इस बार हवा का रुख थोड़ा अलग है, क्योंकि लगातार 3 बार से सांसद रहे बीजेपी कैंडिडेट्स सुशील कुमार सिंह को विरोध का सामना करना पड़ रहा है. दूसरी तरफ ऐन चुनाव के समय जेडीयू से राजद में आए अभय कुशवाहा को राष्ट्रीय जनता दल ने महागठबंधन का कैंडिडेट बनाया है. यह सीट गठबंधन में कांग्रेस पार्टी को लेकर चर्चा में थी और यहां से निखिल सिंह तैयारी कर रहे थे. हालांकि, लालू के खेल ने जातीय समीकरण ही बदल दिया.

सीनियर जर्नलिस्ट लव कुमार मिश्रा औरंगाबाद लोकसभा सीट पर जातीय समीकरण को लेकर कहते हैं, यहां सबसे अधिक राजपूत 2.25 लाख वोटर्स हैं, जो चुनाव में पूरी तरह से निर्णायक किरदार में होते हैं. बात जब राजपूतों की शान की या फिर चित्तौड़गढ़ बचाने की होती है तो यह एक साथ हो जाते हैं. इनके वोटों का ध्रुवीकरण नहीं होता है, जबकि अन्य जातियों के वोटरों में बड़े पैमाने पर ध्रुवीकरण होता है. हालांकि, इस बार लालू के गेम से परिस्थितियां थोड़ी अलग हैं.

अगर यह सीट कांग्रेस पार्टी के हिस्से में जाती और कैंडिडेट निखिल सिंह होते तो राजपूतों के वोट बंट सकते थे. लेकिन, दोनों परिवारों में सुशील सिंह ही राजपूत कैंडिडेट हैं. ऐसे में वोटों का ध्रुवीकरण नहीं हो रहा है. इसके साथ कांग्रेस पार्टी के वोटर्स भी सुशील सिंह की तरफ डायवर्ट हो सकते हैं.

औरंगाबाद से लगे गया में पीएम मोदी का दौरा भी कहीं न कहीं लोगों में मौजूदा सांसद की नाराजगी को दूर करने वाला कहा जा रहा है. विकास के मामले को लेकर सुशील सिंह से नाराजगी जरूर है, लेकिन गया में अमित शाह और फिर मोदी का कार्यक्रम मरहम कहा जा रहा है.

राजनीतिक जानकार बताते हैं, अंत में चुनावी हवा मोदी के चेहरे पर आ जाती है. इस कारण से क्षेत्रीय कैंडिडेट्स से नाराजगी भूलाकर लोग मोदी के चेहरे पर वोट कर सकते हैं. लोकसभा चुनाव 2019 में भी ऐसा ही हुआ था, जब गैर राजपूत कैंडिडेट्स ने चित्तौड़गढ़ को ध्वस्त करने की बात की थी. राजपूत एक हुए और सुशील सिंह विजयी रहे.

सीनियर जर्नलिस्ट प्रवीण बागी मानते हैं, अभय कुशवाहा ऐसे तो जातीय समीकरण में फिट हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव में वोटर्स का ध्रुवीकरण मोदी के चेहरे को लेकर बहुत होता है. ऐसे में अब तक अभय कुशवाहा के पक्ष में जो चीजें जा रही हैं, वह मतदान के दौरान बदल सकती हैं.

वो कहते हैं, एक बड़ा प्रश्न इस सीट को लेकर कांग्रेस पार्टी की खामोशी भी है. कांग्रेस पार्टी इस सीट से अपना कैंडिडेट चाहती थी, लेकिन लालू का फैक्टर यहां काम कर गया. ऐसे में यह भी बताया जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी की नाराजगी का भी बड़ा लाभ बीजेपी कैंडिडेट सुशील सिंह को मिल सकता है.

यहां से लोजपा (R) के प्रमुख चिराग पासवान के बहनोई अरुण भारती चुनाव लड़ रहे हैं, दूसरी तरफ आरजेडी की अर्चना रविदास हैं. जमुई में पलड़ा तो NDA का भारी है, पर इस बार जीत का मार्जिन कम होगा.

अरुण भारती को पर्सनल तौर पर तो नहीं, लेकिन मोदी के नाम का बड़ा सहारा मिलता दिख रहा है. वोटर्स मोदी की गारंटी पर निर्भर है. वहीं, इंडी गठबंधन से RJD की उम्मीदवार अर्चना रविदास के पक्ष जो दिख रहा है, वो है उनकी और उनके पति की जाति.

अर्चना को रविदास जाति वोटर्स के साथ अब यादवों का समर्थन भी मिलता दिख रहा है. जबकि, इसके पहले ऐसा कभी नहीं रहा. 2009 के चुनाव में आरजेडी ने श्याम रजक और 2014 में सुधांशु शेखर मीडिया को मैदान में उतारा था. ये दोनों रविदास जाति से ही आते हैं, लेकिन इनके चुनाव मैदान में रहते हुए क्षेत्र का यादव वोटर इनके पक्ष में अग्रेसिव नहीं दिखा.

इसके बाद 2019 के चुनाव में यह सीट महागठबंधन ने रालोसपा को दे दी. तब भूदेव चौधरी मैदान में आए और चिराग पासवान से हार गए.

भास्कर की टीम शेखपुरा, सिकंदरा, खैरा, जमुई, झाझा और सोनो सहित कई भिन्न-भिन्न इलाकों में गई. घूमने के दौरान क्षेत्रीय लोगों से मुलाकात हुई. वो किस तरह का सांसद चाहते हैं? उनके लिए विकास मामला है या जाति और धर्म के नाम पर वो वोट डालेंगे? ऐसे कई प्रश्न थे, जाे लोगों से पूछे गए. लेकिन, लोगों से बात करने पर दो ही फैक्टर सामने आए हैं.

यहां पहला फैक्टर है- इस बार के लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय उम्मीदवार का होना. महागठबंधन की तरफ से राजद ने जमुई में अर्चना रविदास को अपना उम्मीदवार बनाया है. जमुई शहर में ही इनका मायका है. इस कारण उम्मीदवार के क्षेत्रीय होने की बात को जबरदस्त ढंग से भुनाया जा रहा है.

आरजेडी अपने MY समीकरण के भरोसे अधिक है. लालू की उम्र चुनाव प्रचार के आड़े आ रही है. उन्होंने अब तक एक भी सभा नहीं की.

दूसरा फैक्टर- जमुई में ईश्वर राम की भक्ति अर्चना रविदास के क्षेत्रीय उम्मीदवार होने पर भारी पड़ती दिख रही है. अयोध्या में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ईश्वर राम के मंदिर का बन जाना हवा का रुख जमुई से NDA की तरफ हो गया है. इस कारण यहां से लोजपा (रामविलास) के उम्मीदवार और चिराग पासवान के बहनोई अरुण भारती का पलड़ा भारी है. 4 अप्रैल को पीएम मोदी का जमुई आना और अरुण भारती के पक्ष में प्रचार करना भी NDA उम्मीदवार के लिए प्लस पॉइंट बन गया है.

यहां राम मंदिर और मोदी बड़े फैक्टर हैं. वरिष्ठ पत्रकार मुरली दीक्षित एक उदाहरण देकर बताते हैं. कहते हैं- चुनाव प्रचार प्रारम्भ होने के बाद एक ऑफिस के सफाई कर्मचारी से वो बात कर रहे थे. सफाई कर्मचारी रवि दास जाति से ही था. बातों ही बातों में उससे पूछा कि किसे वोट देंगे ? अर्चना तो तुम्हारी जाति से खड़ी हैं. इस पर सफाई कर्मचारी का उत्तर था कि हम उसे वोट नहीं देंगे. हम अपना वोट तो मोदी को ही देंगे.

फिर उससे प्रश्न पूछा कि ऐसा क्यों? तब उसने कहा- पहले हमारे पास घर नहीं था. पीएम आवास योजना के अनुसार घर मिल गया. फिर राम मंदिर बन गया. इसके बाद, उस सफाई कर्मचारी ने एक बात और कही कि यदि राजद जीत गया तो फिर रोड पर डंडा लिए लोग दिखेंगे.

मुकेश यादव युवा राजद के प्रदेश महासचिव हैं. साथ ही उम्मीदवार अर्चना रविदास के प्रतिनिधि भी हैं. जमुई में हवा का रुख किस ओर है? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए मुकेश यादव ने दावा किया कि यहां तो कोई भिड़न्त ही नहीं है. चारों तरफ, हर समाज के लोग दलगत भावना से ऊपर उठकर जमुई की बेटी को सपोर्ट कर रहे हैं. इनके पक्ष में हर समाज के लोग हैं. ऐसा इसलिए है कि जब से जमुई संसदीय क्षेत्र बना तब से लेकर आज तक किसी भी क्षेत्रीय आदमी को उम्मीदवार नहीं बनाया गया. बाहरी लोगों को जमुई के लोगों ने मौका दिया पर चुनाव जीतने के बाद कोई काम नहीं किया.

वहीं, लोजपा (रामविलास) के प्रदेश महासचिव, जो जमुई की प्रभारी भी हैं. इनसे पूछा गया कि हवा का रुख किस ओर है? उनका दावा है कि हवा का रुख पीएम मोदी और एनडीए उम्मीदवार अरुण भारती की तरफ है. फिर प्रश्न किया गया कि अरुण भारती को जनता वोट क्यों देगी? तो इसका उत्तर मिला कि वो पढ़े लिखे हैं. सुयोग्य हैं. निष्ठावान और मेहनती हैं. वो पूरे क्षेत्र का विकास करेंगे.

नवादा में इस बार राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के प्रयोग ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है, लेकिन यही प्रयोग आत्मघाती भी साबित हो सकता है. बीजेपी की तरफ से राज्यसभा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री सीपी ठाकुर के बेटे डाक्टर विवेक ठाकुर कैंडिडेट हैं तो वहीं राजद ने श्रवण कुशवाहा को अपना उम्मीदवार बनाया है.

भूमिहार और यादव बहुल लोकसभा क्षेत्र में मुख्य मुकाबला राजद और बीजेपी के बीच ही है. लेकिन, कभी राजद के वफादार सिपाही रहे राजबल्लभ यादव के भाई विनोद यादव ने इस बार पार्टी से बगावत कर निर्दलीय मैदान में उतरकर मुकाबले को रोचक बना दिया है.

नीतीश कुमार के जिस लव-कुश (कोइरी-कुर्मी) वोट में सेंधमारी के लिए लालू प्रसाद ने कुशवाहा पर दांव लगाया है, उस हिसाब से कुशवाहा वोट राजद के साथ गोलबंद होते हुए नहीं दिख रहे हैं. दूसरी तरफ वफादार के बागी हो जाने से कोर वोट बैंक यादव में सेंधमारी हो रही है. स्थिति यह है कि नवादा लोकसभा में राजद के विनिंग विधायक भी निर्दलीय कैंडिडेट के साथ घूम रहे हैं.

नवादा में सबसे अधिक लगभग 4 लाख जनसंख्या भूमिहारों की है, इसके बाद लगभग 3.5 लाख जनसंख्या यादवों की है. लालू यादव के प्रयोग से जहां यादवों के वोट बिखर रहे हैं तो भूमिहार और वैश्य वोट भाजपा के साथ एकजुट नजर आ रहे हैं. साथ में दलित और EBC वोट भी भाजपा के खाते में जा रहे हैं.

सिर्फ लोकल वर्सेज बाहरी बीजेपी की परेशानी

भाजपा के विरुद्ध लोगों में एक बड़ी नाराजगी बाहरी कैडिडेट को लेकर है. यहां से भोजपुरी गायक गुंजन सिंह निर्दलीय मैदान में हैं और घर का बेटा वर्सेज बाहरी दूत के थीम पर अपनी कैंपेनिंग कर रहे हैं. ये भी उसी भूमिहार जाति से हैं, जिससे विवेक ठाकुर हैं. ऐसे में यहां बीजेपी के वोट में थोड़ी सेंध लगा सकते हैं. लेकिन, फिर भी यादव वोट बैंक में फूट पड़ने से विवेक ठाकुर की स्थिति मजबूत बन गई है.

वरिष्ठ पत्रकार अशोक प्रियदर्शी कहते हैं कि राजबल्लभ यादव परिवार का नवादा में दबदबा रहा है. ये निर्दलीय चुनाव लड़कर भी 78 हजार वोट लाए हैं. इसलिए इन्हें इग्नॉर नहीं किया जा सकता है. जीत-हार का निर्णय तो जनता तय करेगी, लेकिन समीकरण यहां जरूर गड़बड़ाया है. कुशवाहा वोट अभी तक एनडीए का कोर वोट बैंक रहा है और लालू यादव कैंडिडेट उतार कर इसमें सेंधमारी करने की प्रयास कर रहे हैं. कैंडिडेट के चेहरे के आधार पर कुछ सेंधमारी महत्वपूर्ण होते हुए नजर आ रही है.

अशोक प्रियदर्शी कहते हैं कि लालू यादव की ये तैयारी लोकसभा से अधिक विधानसभा चुनाव के लिए है. कुशवाहा कैंडिडेट को मैदान में उतारना इस बात का साफ संदेश है. 2020 के चुनाव में भी कुशवाहा मैदान में थे और दूसरे नंबर पर थे. ऐसे में लालू प्रसाद यादव 2025 में लालू प्रसाद यादव के कोर वोट बैंक में सेंधमारी की प्रयास किए हैं.

वरिष्ठ पत्रकार वरुणेंद्र कुमार कहते हैं कि जैसे-जैसे कांग्रेस पार्टी का ग्राफ गिरना प्रारम्भ हुआ, नवादा में बीजेपी का ग्राफ बढ़ना प्रारम्भ हुआ. 2009 के बाद से लगातार भाजपा यहां से जीतते आ रही है. भाजपा के लिए बिहार में यदि सबसे सेफ सीट की बात की जाए तो उनमें नवादा भी एक है.

नवादा बाजार में रहने वाले अखिलेश कुमार कहते हैं कि योजना जिसका फायदा सबको मिलेगा वो मुझे भी मिलेगा. छोटे लोगों को आज तक कोई पूछा है, लेकिन फिर भी मुझे मोदी चाहिए. मोदी का बोलना है कि समय आने पर जैसे राम मंदिर बना है, वैसे ही गरीब आदमी आगे बढ़ेगा. इसी सोच के साथ मैं जुड़ा हुआ हूं. मोदी गरीब आदमी का दिन भी बदलेंगे.

कादिरगंज के घोष्टाम के विजय कुमार कहते हैं कि श्रवण कुशवाहा को उम्मीदवार बनाने के प्रश्न पर वे कहते हैं कि लालू यादव का कोई प्रयोग यहां सफल नहीं होगा. यहां कैंडिडेट श्रवण कुमार को अपने दम पर वोट मिलेगा न कि लालू यादव की ताकत और प्रयोग के कारण. लालू यादव के कारण भूमिहार क्षुब्ध हैं, वे भाजपा के साथ एकजुट हो गए हैं.

वारिसलीगंज के सुजीत कुमार लालू यादव की तरफ से यादव की स्थान कुशवाहा को उम्मीदवार बनाए जाने पर कहते हैं कि पार्टी किसी आदमी विशेष की बपौती नहीं है. अच्छी बात है कि पार्टी हर किसी को मौका देना चाहती है. अशोक महतो कारावास से निकले है. उनकी पत्नी पढ़ी-लिखी है, इसलिए उन्हें टिकट दिया गया है. अशोक महतो को टिकट नहीं दिया गया है. हमारा एक ही मामला है कि लोकल होना चाहिए और वो हमारी परेशानियों को समझ सके, ऐसा नेता चाहिए.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button