स्वास्थ्य

इन चीजो से महिलाओं में यकृत रोग की बढती है संभावना

लिवर की रोग एक गंभीर स्वास्थ्य चिंता है जो पूरे विश्व में लाखों लोगों को प्रभावित कर रही है, स्त्रियों को अनोखे जोखिमों का सामना करना पड़ता है जिन पर ध्यान देने की जरूरत है. इस मामले की गहराई से जांच करने के लिए, हमने उन विशिष्ट कारकों पर प्रकाश डालने के लिए चिकित्सा जानकारों से परामर्श लिया है जो स्त्रियों में यकृत बीमारी की आसार बढ़ाते हैं.

क्या चीज़ स्त्रियों को असुरक्षित बनाती है?

हार्मोनल प्रभाव

महिलाएं अपने पूरे जीवन में हार्मोनल उतार-चढ़ाव का अनुभव करती हैं, खासकर युवावस्था, गर्भावस्था और रजोनिवृत्ति के दौरान. ये हार्मोनल बदलाव लीवर के कार्य और चयापचय को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे संभावित रूप से लीवर बीमारी का खतरा बढ़ सकता है.

गर्भावस्था-संबंधी स्थितियाँ

गर्भावस्था से संबंधित लिवर की स्थितियां जैसे इंट्राहेपेटिक कोलेस्टेसिस ऑफ प्रेगनेंसी (आईसीपी) और एचईएलपी सिंड्रोम मातृ लिवर स्वास्थ्य के लिए जरूरी जोखिम पैदा करती हैं. इन स्थितियों से लीवर में सूजन और लीवर की कार्यक्षमता ख़राब हो सकती है.

मौखिक गर्भनिरोधक और हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एचआरटी)

मौखिक गर्भ निरोधकों और हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एचआरटी) का इस्तेमाल यकृत ट्यूमर और सौम्य यकृत घावों सहित यकृत विकारों के बढ़ते जोखिम से जुड़ा हुआ है. इन दवाओं में सिंथेटिक हार्मोन लीवर के चयापचय और पित्त उत्पादन को प्रभावित कर सकते हैं.

शराब की खपत

जबकि पुरुष और महिलाएं दोनों ही लीवर पर शराब के प्रतिकूल असर के प्रति संवेदनशील होते हैं, शरीर की संरचना और चयापचय में अंतर के कारण महिलाएं अधिक संवेदनशील होती हैं. यहां तक ​​कि मध्यम शराब के सेवन से भी स्त्रियों में लीवर की सूजन, फैटी लीवर बीमारी और अल्कोहलिक हेपेटाइटिस का खतरा बढ़ सकता है.

मोटापा और मेटाबोलिक सिंड्रोम

मोटापा और चयापचय सिंड्रोम गैर-अल्कोहल फैटी लीवर बीमारी (एनएएफएलडी) और इसके प्रगतिशील रूप, गैर-अल्कोहल स्टीटोहेपेटाइटिस (एनएएसएच) के लिए जरूरी जोखिम कारक हैं. मोटापे या मेटाबोलिक सिंड्रोम वाली स्त्रियों में इन यकृत स्थितियों के विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है, जिससे सिरोसिस और यकृत कैंसर जैसी गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं.

स्व – प्रतिरक्षित रोग

कुछ ऑटोइम्यून बीमारियाँ, जैसे ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस और प्राथमिक पित्तवाहिनीशोथ, मुख्य रूप से स्त्रियों को प्रभावित करती हैं. ये स्थितियाँ तब होती हैं जब प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से लीवर पर धावा कर देती है, जिससे सूजन हो जाती है और लीवर की क्षति बढ़ जाती है.

चिकित्सा पेशेवरों से अंतर्दृष्टि

डॉ स्मिथ, हेपेटोलॉजिस्ट

“महिलाओं को अपने लिवर के स्वास्थ्य के बारे में सावधान रहने की आवश्यकता है, खासकर गर्भावस्था और रजोनिवृत्ति जैसे जरूरी जीवन चरणों के दौरान. हार्मोनल उतार-चढ़ाव लिवर के कार्य को प्रभावित कर सकते हैं और अंतर्निहित लिवर की स्थितियों को खुलासा कर सकते हैं. स्त्रियों के लिए नियमित लिवर जांच कराना और स्वस्थ जीवन शैली बनाए रखना जरूरी है. उनके जोखिम को कम करें.

डॉ पटेल, गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट

“शराब का सेवन स्त्रियों के लीवर के स्वास्थ्य के लिए एक जरूरी चिंता का विषय बना हुआ है. शराब की थोड़ी मात्रा भी नुकसानदायक असर डाल सकती है, खासकर पहले से उपस्थित लीवर की स्थिति या चयापचय संबंधी विकारों वाली स्त्रियों में. शराब के सेवन से जुड़े जोखिमों को खुलासा करने में शिक्षा और जागरूकता अभियान जरूरी हैं.” औरत.

डॉ गुयेन, प्रसूति-स्त्री बीमारी विशेषज्ञ

“गर्भावस्था से संबंधित यकृत की स्थिति, जैसे आईसीपी और एचईएलपी सिंड्रोम, को मां और बच्चे दोनों के लिए जटिलताओं को रोकने के लिए सावधानीपूर्वक नज़र की जरूरत होती है. इन स्थितियों के प्रबंधन और इष्टतम मातृ और भ्रूण परिणामों को सुनिश्चित करने के लिए प्रसूति जानकारों और हेपेटोलॉजिस्ट के बीच घनिष्ठ योगदान जरूरी है.” लिवर की रोग स्त्रियों के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है, जो हार्मोनल परिवर्तन, गर्भावस्था से संबंधित स्थितियों, शराब का सेवन, मोटापा और ऑटोइम्यून रोंगों सहित असंख्य कारकों से प्रभावित होती है. इन जोखिम कारकों को समझकर और समय पर चिकित्सा राय लेकर, महिलाएं अपने लीवर के स्वास्थ्य और समग्र कल्याण की सुरक्षा के लिए एक्टिव कदम उठा सकती हैं.

 

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