उसके बाद भविष्य में होने वाले बड़े युद्धों को रोकने के लिए 1945 में संयुक्त देश की स्थापना की गई, लेकिन अब जब रूस और यूक्रेन के बीच पिछले ढाई वर्ष से युद्ध चल रहा है और छह वर्ष से गाजा पट्टी पर हिंसक संघर्ष चल रहा है महीनों तक किसी भी पक्ष ने उन पर प्रतिबंध लगाने में संयुक्त देश की किरदार पर विचार नहीं किया. देखा जाए तो रूस की वास्तविक लड़ाई यूक्रेन से नहीं बल्कि अमेरिका से है क्योंकि अमेरिका और अन्य नाटो सदस्य राष्ट्र इस छोटे से राष्ट्र का समर्थन कर रहे हैं.
यूक्रेन भी नाटो का सदस्य है और ऐसे में अमेरिका को उसका समर्थन करना ही था, लेकिन यदि रूस अपने सहयोगी ईरान की सहायता के लिए आता है तो उसे इजराइल का समर्थन कर रहे अमेरिका से लड़ना होगा. इजराइल और ईरान के बीच तनाव का दुनिया के कई राष्ट्रों की अर्थव्यवस्थाओं और शेयर बाजारों तथा इक्विटी पर नकारात्मक असर पड़ेगा. यदि यह तनाव और बढ़ा तो कच्चे ऑयल की कीमतें आसमान छूने लगेंगी.
इस तनाव के कारण हिंदुस्तान समेत दुनिया के अन्य राष्ट्रों में महत्वपूर्ण सामानों की कीमतें बहुत अधिक बढ़ जाएंगी. वहां तनाव के कारण पुर्तगाली झंडे वाले मालवाहक जहाज एमएससी एराइज को ईरानी सेना ने अपने कब्जे में ले लिया. इसके चालक दल में 17 भारतीय हैं. हिंदुस्तान गवर्नमेंट के दबाव में ईरानी गवर्नमेंट ने भारतीय ऑफिसरों को 17 क्रू सदस्यों से मिलने की इजाजत दे दी है. हिंदुस्तान के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने टेलीफोन पर ईरानी विदेश मंत्री के सामने यह मामला उठाया था. दुनिया ने कई बार युद्ध के दुष्परिणाम झेले हैं. हिंदुस्तान स्वयं 1962 में चीन के साथ, 1965 और 1971 में पाक के साथ युद्धों के नकारात्मक प्रभावों को झेल चुका है. लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी की नाजी गवर्नमेंट ने जितनी इंसानों की जान ली, उस यातना का दुनिया में कोई मुकाबला नहीं है.
उस संघर्ष के दौरान 60 से 70 मिलियन यहूदी मारे गए. तब यातनाएं झेलने के बाद यहूदी इतने दृढ़ हो गए कि उन्होंने 14 मई 1948 को पश्चिमी एशिया के दक्षिण में स्थित लेवंत क्षेत्र में अपना अलग राष्ट्र इजराइल स्थापित कर लिया. नए देश इज़राइल के निर्माण के उत्तर में, सभी पड़ोसी अरब राष्ट्रों ने इस पर धावा किया, जो पहला अरब-इजरायल युद्ध भी था. यदि ईरान और इजराइल के बीच युद्ध को तुरंत नहीं रोका गया तो पूरी जनता पर इसके रिज़ल्ट बहुत बुरे हो सकते हैं.