कश्मीर की तर्ज पर कांकेर में हुआ ऑपरेशन ऑलआउट
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में लोकसभा चुनाव के दो दिन पहले हुए सबसे बड़े सर्जिकल हड़ताल की। जिस तरह आतंकवादियों के घर में घुसकर सेना और सुरक्षाबल के जवान आतंकवादियों का सफाया कर चुके हैं। वैसे ही उग्रवादियों के गढ़ में घुसकर एक बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया गया। कांकेर में हुए इस मुठभेड़ की खास बात ये थी कि इसे कश्मीर के ऑपरेशन ऑलआउट के तर्ज पर अंजाम दिया गया। जिसमें सेना और सुरक्षाबलों के लिए सबसे बड़े मददगार साबित हुए लोकल लड़ाके। कश्मीर की थ्योरी से छत्तीसगढ़ के आतंकवादी यानी उग्रवादी मारे गए।
छत्तीसगढ़ बनने के 24 वर्ष बाद बड़ा ऑपरेशन
मंगलवार को लाल आतंक के गढ़ छत्तीसगढ़ में सुरक्षाबलों को बड़ी कामयाबी मिली। अलग राज्य बनने के करीब 24 वर्ष बाद छत्तीसगढ़ में ये पहला मौका है, जब यहां एक साथ 29 उग्रवादियों को मार गिराया गया है। सबसे खास बात ये है कि इस ऑपरेशन में सभी कट्टर उग्रवादी मारे गए हैं। जिसमें टॉप उग्रवादी कमांडर और 25 लाख का इनामी शंकर राव भी शामिल है। यही नहीं उग्रवादियों के पास से भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद भी बरामद किया गया है।
यानी लोकसभा चुनाव की शुरूआत से ठीक पहले एक झटके में उग्रवादियों के बड़े कुनबे का सफाया कर दिया गया। कांकेर में उग्रवादियों के खिलाफ़ इस ऑपरेशन को कुछ उसी अंदाज़ में अंजाम दिया गया, जैसे जम्मू और कश्मीर में आतंकवादियों के खात्मा किया जा रहा है। दरअसल केंद्र गवर्नमेंट के निर्देश पर सुरक्षा एजेंसियां लम्बे समय से उग्रवादियों के खिलाफ़ ऑल आउट ऑपरेशन की रणनीति बना रही थी।
कश्मीर की तरह कांकेर में चलाया गया अभियान
कांकेर के ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए पिछले सप्ताह ही 10 राज्यों के DGP के साथ गृह सचिव और IB चीफ की बैठक हुई, जिसमें इस मिशन पर अंतिम मुहर लगी। बैठक के दौरान छत्तीसगढ़ में कश्मीर की तरह टारगेट बेस्ड ऑपरेशन लॉन्च करने की बात हुई और फिर खुफिया इनपुट के आधार पर पूरी प्लानिंग की गई। जिसे BSF के साथ DRG ने मिलकर अंजाम दिया।
जंगलों में आमने-सामने हुई एनकाउंटर के दौरान सुरक्षाबलों ने उग्रवादियों की मांद में घुसकर उनको मार गिराया। नक्सल मोर्चे पर पहली बार ऐसा हुआ, जब आमने-सामने की लड़ाई में उग्रवादियों पर फोर्स पूरी तरह से हावी रही और बिना किसी कैजुअल्टी के ऑपरेशन कम्प्लीट हुआ।
आदिवासी लड़ाकों की ली गई मदद
नक्सलियों के खिलाफ़ इस ऑपरेशन को सक्सेसफुल बनाने में सुरक्षा एजेंसियों की कश्मीर वाली थ्योरी अपनाई। जिसके अनुसार जंगलों में रहने वाले क्षेत्रीय लोग और नक्सल की राह छोड़ चुके पुराने लड़ाकों की सहायता ली गई।। जो बहुत कारगर साबित हुई। करीब पांच दिन की प्लानिंग के दौरान सैटेलाइट तस्वीरों के अतिरिक्त ड्रोन का इस्तेमाल कर उग्रवादियों के मूवमेंट को लगातार ट्रैक किया गया। साथ ही पूरे क्षेत्र में तलाशी अभियान चलाया गया और फिर साढ़े पांच घंटे तक चली आमने-सामने की भिड़ंत में 29 उग्रवादियों को ढेर कर दिया गया।
आपको बता दें कि कांकेर में उग्रवादियों को ढेर करने में BSF और स्पेशल फोर्स के अतिरिक्त DRG यानी डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड की बहुत खास किरदार रही। बोला जाता है कि उग्रवादियों के बीच DRG का इतना खौफ है कि इनके डर से उग्रवादी अपनी मांद से बाहर तक नहीं निकलते। आखिर ये DRG होते क्या हैं।। अब ये समझिए। दरअसल छत्तीसगढ़ में उग्रवादियों पर लगाम कसने के लिए DRG का गठन हुआ था।
DRG के नाम से डरते हैं नक्सली
DRG में ज़्यादातर छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्र के आदिवासी हैं। DRG की टीम में क्षेत्रीय लड़के और आत्मसमर्पित उग्रवादी होते हैं। इन्हें मुख्य धारा में जोड़ने और रोजगार के लिए DRG में रखा जाता है। लोकल होने के कारण इन्हें जंगलों के बारे में काफी जानकारी होती है। पूर्व उग्रवादी होने की वजह से इंटेलिजेंस नेटवर्क काफी मजबूत होता है। DRG के जवान बिना बुलेटप्रूफ जैकेट और हेलमेट के भी रह सकते हैं। ये 3 से 4 दिन लगातार जंगलों में उग्रवादियों की तलाश कर सकते हैं। इनके पास सिर्फ़ खाने पीने के सामान और हाथ में हथियार ही होते हैं।
दरअसल नक्सल प्रभावित क्षेत्र पहाड़ और घने जंगलों से घिरे हुए होते हैं। यहां की भगौलिक स्थिति को अर्धसैनिक बल और सीआरपीएफ के जवान अच्छी तरह समझ नहीं पाते। ऐसे में उग्रवादियों के विरुद्ध ऑपरेशन में DRG के जवान बहुत खास रोल निभाते हैं। यही वजह है कि नक्सल प्रभावित इलाकों में 16 वर्ष पहले वजूद में आए DRG की संख्या और हिस्सेदारी लगातार बढ़ती जा रही है।
2008 में हुआ था फोर्स का गठन
DRG का गठन सबसे पहले 2008 में छत्तीसगढ़ के कांकेर और नारायणपुर में हुआ। बीजापुर और बस्तर में DRG का गठन वर्ष 2013 के दौरान किया गया। वहीं सुकमा और कोंडागांव में ये 2014 के दौरान अस्तित्व में आया। इसके बाद 2015 में दंतेवाड़ा, राजनांदगांव और कवर्धा जिले में DRG की आरंभ की गई।
कई बार सुरक्षा एजेंसियों को उग्रवादियों और आतंकियों के गठजोड़ की खबरें मिलती रही हैं। यही वजह है कि केंद्र गवर्नमेंट और सुरक्षा एजेंसियां कश्मीर के आतंकवादियों के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के उग्रवादियों को भी चुन-चुन कर समाप्त कर रही है।