नींद का अधिकार एक बुनियादी मानवीय जरूरत है : बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे उच्च न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय को एक मुद्दे में खरी-खरी सुना दी है. उच्च न्यायालय ने एक मुद्दे के सुनवाई के दौरान बोला कि नींद का अधिकार एक बुनियादी मानवीय आवश्यकता है और इसे न देना किसी भी आदमी के मानवाधिकारों का उल्लंघन है. जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस मंजूषा देशपांडे की बेंच ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) को ये निर्देश दिया कि जब एजेंसी किसी को भी प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के अनुसार समन जारी किया जाए तो बयान दर्ज करने के लिए “सांसारिक समय” बनाए रखने के निर्देश जारी किए जाएं.
कोर्ट ने की याचिका पर सुनवाई
हाईकोर्ट 64 वर्षीय गांधीधाम निवासी राम कोटुमल इसरानी द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उनकी गिरफ्तारी को गैरकानूनी घोषित करने की मांग की गई थी. एडवोकेट विजय अग्रवाल, आयुष जिंदल और यश वर्धन तिवारी ने न्यायालय को कहा कि 7 अगस्त, 2023 को, इस्सरानी दिल्ली में सुबह 10.30 बजे जांच में शामिल हुए और उनकी पर्सनल लिबर्टी से समझौता किया गया, उनका मोबाइल टेलीफोन बरामद कर लिया गया, और उन्हें प्रवर्तन निदेशालय ऑफिसरों ने घेर लिया और उनका वॉशरूम तक पीछा किया.
अग्रवाल ने न्यायालय से आगे कहा, इस्सरानी से पूरी रात पूछताछ की गई, जिससे उनके ‘नींद के अधिकार’ का उल्लंघन हुआ, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार प्रदत्त उनके जीवन के अधिकार का हिस्सा है. प्रवर्तन निदेशालय ने इसरानी का बयान रात 10.30 बजे से सुबह 3 बजे तक दर्ज किया, जिससे वे सोने के अधिकार से वंचित हुए. अग्रवाल ने बोला कि इसरानी को मेडिकल प्रॉब्लम्स थीं और ऐसे में प्रवर्तन निदेशालय को आधी रात के बाद उनका बयान दर्ज करने की कोई शीघ्र नहीं करनी चाहिए थी और उन्हें अगली तारीख या उसके कुछ दिनों बाद भी बुलाया जा सकता था. इसरानी को प्रवर्तन निदेशालय ने औपचारिक रूप से 8 अगस्त, 2023 को सुबह 5.30 बजे अरैस्ट दिखाया था.
‘नींद की कमी आदमी के हेल्थ को प्रभावित करती है’
एजेंसी की ओर से पेश एडवोकेट हितेन वेनेगांवकर और आयुष केडिया ने बोला कि इस्सरानी को उनके बयान को देर से दर्ज करने पर कोई विरोध नहीं थी और इसलिए, इसे दर्ज किया गया. बेंच ने कहा, “सांसारिक समय पर बयान दर्ज करने से निश्चित रूप से किसी आदमी की नींद, जो कि एक आदमी का बुनियादी मानवाधिकार है, से वंचित हो जाती है. हम इस प्रैक्टिस को एक्सेप्ट नहीं कर सकते हैं.” नींद की कमी आदमी के हेल्थ को प्रभावित करती है, उसकी मेंटल स्टेटस, काम करने की स्किल आदि को बिगाड़ सकती है.
सोने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता
हाईकोर्ट ने कहा, “राम कोटुमल इसरानी, को मुनासिब समय से परे एजेंसी द्वारा उसके बुनियादी मानव अधिकार, यानी सोने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है. बयान आवश्यकता के हिसाब से ठीक टाइम पर दर्ज किए जाने चाहिए, न कि रात में जब आदमी की काम करने की स्किल बिगड़ने लगे.” न्यायालय ने एडवोकेट अग्रवाल के उस तर्क को खारिज कर दिया, जिसमें वो इसरानी की गिरफ्तारी गैरकानूनी बता रहे थे.
‘अगले दिन भी बुलाया जा सकता था’
कोर्ट ने बोला कि जब किसी आदमी को पूछताछ के लिए बुलाया जाता है, तो जांच एजेंसी तब तक उस निर्णय पर नहीं पहुंच पाती है कि उक्त आदमी किसी क्राइम का गुनेहगार है या नहीं. याचिकाकर्ता, की उम्र 64 साल है और वह पहले भी अपना बयान दर्ज कराने के लिए एजेंसी के सामने पेश हुआ था. न्यायालय ने बोला कि इस्सरानी को उनकी कथित सहमति के बावजूद आधी रात के बाद प्रतीक्षा कराने के बजाय किसी और दिन या अगले दिन भी बुलाया जा सकता था. बेंच ने मुद्दे के अनुपालन के लिए 9 सितंबर की तारीख तय की है.