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जानें सिलक्यारा टनल में फसे 41 मजदूरों का टनल के अंदर कैसे बिता एक-एक दिन

मंगलवार की रात सिल्कयारा सुरंग के टूटे हुए हिस्से से एक-एक करके फंसे हुए 41 मजदूरों के बाहर निकलते ही जोरदार जयकारे और नारे लगने लगे. कुछ श्रमिकों के चेहरे पर मुस्कान थी तो कुछ के चेहरों पर 17 दिन तक मृत्यु से जंग लड़ने की थकान साफ नजर आ रही थी. टनल से बाहर निकलने के बाद सभी मजदूरों को एम्बुलेंस से नजदीकी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया. वहीं पिछले 17 दिनों से चल रहे बचाव अभियान की हर घंटे जानकारी ले रहे पीएम मोदी ने सभी श्रमिकों से टेलीफोन पर बात की.

सोशल मीडिया पर प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने सफल ऑपरेशन की सराहना करते हुए इस बात पर बल दिया कि मिशन में शामिल सभी लोगों ने इन्सानियत और टीम वर्क का एक अद्भुत उदाहरण सेट किया है. बता दें कि 17 दिन से लगाता श्रमिकों को सुरक्षित ढंग से निकालने के लिए युद्धस्तर पर रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया था. इस दौरान तरह-तरह की बाधाएं आईं. कभी ड्रिलिंग मशीन टूटी तो कभी लगातार लैंडस्लाइड ने मलबे को और बढ़ा दिया.

28 नवंबर, 17वां दिन- मंगलवार को मैनुअल ड्रिलिंग के जरिए सुरंग में फंसे श्रमिकों तक पाइप पहुंचाई गई. इसके बाद एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीम श्रमिकों के पास पहुंची और उन्हें सुरक्षित रूप से बाहर निकाला. श्रमिकों को निकालने की तैयारी शाम को ही कर ली गई थी. टनल के बाहर एंबुलेंस तैनात कर दी गई थी. चिकित्सक भी मौके पर उपस्थित थे. साथ ही टनल के भीतर एक आपातकालीन हॉस्पिटल बनाया गया था.

27 नवंबर, 16वां दिन- रेस्क्यू ऑपरेशन के 16वें दिन रैट-होल माइनिंग प्रारम्भ की गई. इसमें दो टीमें शामिल थीं. जिसमें 12 लोग शामिल थे. हालांकि इस दौरान वर्टिकल और होरिजेन्टल ड्रिलिंग भी जारी रही. सोमवार की देर शाम तक रैट-होल माइनिंग टीम ने 36 मीटर तक खुदाई कर दी थी. आखिरी 10 या 12 मीटर मलबे में मैन्युअल ड्रिलिंग और क्षैतिज खुदाई के लिए जानकारों को बुलाया गया था. वहीं जरूरी 86-मीटर वर्टिकल ड्रिलिंग का लगभग 40 फीसदी पूरा हो चुका था. प्रधान मंत्री के प्रधान सचिव, पीके मिश्रा, गृह सचिव अजय भल्ला और उत्तराखंड के मुख्य सचिव एसएस संधू ने ऑपरेशन का जायजा लिया. जबकि मिश्रा ने फंसे हुए मजदूरों से बात की, उन्हें आश्वासन दिया कि कई एजेंसियां ​​​​उन्हें निकालने के लिए काम कर रही हैं और उन्हें संयम रखना चाहिए.

26 नवंबर, 15वां दिन- बचावकर्मियों ने सुरंग के ऊपर पहाड़ी में ड्रिलिंग प्रारम्भ की, नए विजन अपनाने के पहले दिन लगभग 20 मीटर तक बोरिंग की. वर्टिकल अप्रोच उन पांच विकल्पों में से एक था, जिस पर तैयारी का काम कुछ दिन पहले प्रारम्भ हुआ था. जैसे-जैसे ड्रिलिंग आगे बढ़ रही थी, निकलने का रास्ता बनाने के लिए 700 मिमी चौड़े पाइप डाले जा रहे थे. थोड़ी दूरी पर, एक पतली, 200-मिमी जांच को अंदर धकेला जा रहा था. यह 70-मीटर के निशान तक पहुंच गया था. बार-बार रुकावट आने पर वर्टिकल ड्रिलिंग ऑप्शन को अगले सबसे अच्छे विकल्प के रूप में चुना गया था, जिसने सिल्क्यारा-छोर से होरिजेन्टल ड्रिलिंग ऑपरेशन को प्रभावित किया था, जहां अनुमानित 60 मीटर के मलबे को बचाव कर्मियों का सामना करना पड़ा था.

गैस कटर की पूर्ति के लिए हैदराबाद से एक प्लाज़्मा कटर हवाई मार्ग से लाया जाता था. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की एक टीम और मद्रास सैपर्स के सेना इंजीनियर भी सिल्क्यारा पहुंचे. सुरंग के बड़कोट-छोर से भी ड्रिलिंग की जा रही थी और काम 483 मीटर में से लगभग 10 मीटर आगे बढ़ चुका था.

25 नवंबर, 14वां दिन- तनाव कम करने के लिए फंसे हुए 41 मजदूरों के लिए मोबाइल टेलीफोन और बोर्ड गेम भेजे गए थे. मलबे में ड्रिलिंग करने वाली बरमा मशीन के ब्लेड मलबे में फंस गए, जिससे ऑफिसरों को अन्य विकल्पों पर विचार करने के लिए विवश होना पड़ा. अंतर्राष्ट्रीय सुरंग जानकार अर्नाल्ड डिक्स ने कहा कि बरमा मशीन खराब हो गई है. अधिकारी तब दो विकल्पों पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे. बचे हुए 10-12 मीटर हिस्से में मैन्युअल ड्रिलिंग या ऊपर से लगभग 86 मीटर नीचे ड्रिलिंग के विकल्प पर चर्चा की जा रही थी.

24 नवंबर, 13वां दिन- 24 नवंबर को एक बार फिर ड्रिलिंग रोक दी गई थी. तकनीकी समस्याओं के बाद ऑफिसरों द्वारा ऑपरेशन रोक दिए जाने के एक दिन बाद ड्रिलिंग फिर से प्रारम्भ होने के बाद बरमा ड्रिलिंग मशीन को एक रुकावट का सामना करना पड़ा था. जाहिर तौर पर यह एक धातु की वस्तु थी. उन समस्याओं को पहले ही दिन में ठीक कर लिया गया था और 25 टन की मशीन शाम को फिर से प्रारम्भ की गई थी, लेकिन ड्रिल बिट के धातु गार्डर से टकराने से पहले बोरिंग लगभग एक घंटे तक जारी रही.

दिन 12, 23 नवंबर- जिस प्लेटफॉर्म पर ड्रिलिंग मशीन टिकी हुई थी, उसमें दरारें दिखाई देने के बाद मलबे के माध्यम से बोरिंग को फिर से रोक दिया गया है. बरमा मशीन के रास्ते में लोहे के गर्डर को काटने में छह घंटे की देरी के बाद दिन में ऑपरेशन फिर से प्रारम्भ होने के कुछ घंटों बाद ऐसा हुआ था. 12 नवंबर को बचाव अभियान प्रारम्भ होने के बाद से यह तीसरी बार है कि ड्रिलिंग अभ्यास रोका गया था. जिस प्लेटफॉर्म पर 25 टन की मशीन लगी हुई थी, उसे स्थिर करने के लिए ड्रिलिंग रोक दी गई.

दिन 11, 22 नवंबर- रेस्क्यू ऑपरेशन के 11वें दिन टनल के बाहर एंबुलेंसों की तैनाती की गई. देर शाम को क्षेत्रीय स्वास्थ्य केंद्र में एक विशेष वार्ड तैयार किया गया. देर शाम के घटनाक्रम में, मलबे के माध्यम से स्टील पाइप की ड्रिलिंग में बाधा आती है जब कुछ लोहे की छड़ें बरमा मशीन के रास्ते में आ जाती हैं. शाम 6 बजे तक ढहे हिस्से के मलबे में 44 मीटर तक एस्केप पाइप डाला जा चुका है. राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) की एक टीम को शाम को सुरंग में प्रवेश करते देखा गया. इसके अतिरिक्त 15 डॉक्टरों की एक टीम तैनात की गई थी.

दिन 10, 21 नवंबर- अंदर फंसे 41 मजदूरों का पहला वीडियो सामने आया. ऑफिसरों के अनुसार, ध्वस्त खंड के मलबे के माध्यम से होरिजेन्टल ड्रिलिंग करने पर ध्यान केंद्रित किया गया था, लेकिन बचावकर्मी मजदूरों तक पहुंचने के लिए सुरंग के ऊपर से ड्रिलिंग सहित अन्य विकल्पों की तैयारी कर रहे थे. आपदा स्थल पर, छह इंच चौड़ी नयी पाइपलाइन के माध्यम से भेजे गए एंडोस्कोपिक कैमरे द्वारा कैप्चर की गई एक वीडियो क्लिप कई दिनों से वहां डेरा डाले संबंधियों के लिए कुछ आशा लेकर आई. पाइपलाइन को 20 नवंबर की देर रात 53 मीटर मलबे के माध्यम से धकेल दिया गया था. वीडियो में पीले और सफेद हेलमेट पहने मजदूर पाइपलाइन के जरिए भेजे गए खाद्य पदार्थों को प्राप्त करते और एक-दूसरे से बात करते नजर आ रहे थे.

9वां दिन, 20 नवंबर- पीएम मोदी ने रेस्क्यू ऑपरेशन को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से टेलीफोन पर वार्ता की थी. बचावकर्मी मलबे के माध्यम से छह इंच चौड़ी पाइपलाइन बिछाई गई. जिसकी सहायता से भोजन-पानी की सप्लाई शुरी की गई. चार इंच की मौजूदा ट्यूब का इस्तेमाल ऑक्सीजन और सूखे फल और दवाओं जैसी वस्तुओं की आपूर्ति के लिए किया जा रहा था. रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) से ड्रोन और रोबोट को भागने के अन्य मार्गों की आसार को देखने के लिए साइट पर लाया गया था. इसके अलावा, सुरंग के दूसरी तरफ, बड़कोट-छोर से ड्रिलिंग का काम प्रारम्भ हुआ. तरराष्ट्रीय सुरंग जानकार अर्नोल्ड डिक्स भी आपदा स्थल पर समीक्षा करने पहुँचे.

8वां दिन, 19 नवंबर- बचाव कार्य रोक दिया गया था. क्योंकि रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटी एजेंसियों ने सुरंग के अंदर फंसे 41 मजदूरों को निकालने के लिए कई उपायों को अपनाना प्रारम्भ किया. सुरंग के नीचे एक वर्टिकल शाफ्ट खोदने के लिए पहाड़ी की चोटी तक एक ही दिन में एक सड़क तैयार की गई.

7वां दिन, 18 नवंबर- बीते 18 नवंबर को ड्रिलिंग फिर से प्रारम्भ नहीं की गई. क्योंकि जानकारों का मानना ​था कि सुरंग के अंदर डीजल चालित 1,750-हॉर्स पावर हेवी-ड्यूटी अमेरिकी बरमा द्वारा उत्पन्न कंपन के कारण अधिक मलबा ढह सकता है, जिससे बचाव कर्मियों के जीवन को खतरा हो सकता है. पीएमओ और जानकारों की एक टीम द्वारा वैकल्पिक विकल्प तलाशे जा रहे थे, जिन्होंने फंसे हुए श्रमिकों को बचाने के लिए सुरंग के शीर्ष के माध्यम से वर्टिकल ड्रिलिंग सहित एक साथ पांच निकासी योजनाओं पर काम करने का फैसला लिया है.

6वां दिन, 17 नवंबर- रात भर काम करते हुए, मशीन दोपहर तक मलबे के माध्यम से लगभग 24 मीटर ड्रिल करती है और छह मीटर की लंबाई वाले चार एमएस पाइप डाले जाते हैं. जब पांचवां पाइप किसी लोहे से टकराता है तो प्रक्रिया रुक जाती है. मशीन के क्षतिग्रस्त होने की भी सूचना थी. एनएचआईडीसीएल के निवेदन के बाद बचाव प्रयासों में सहायता के लिए इंदौर से एक और उच्च प्रदर्शन वाली ऑगर मशीन मंगाई गई. शाम को, एनएचआईडीसीएल ने रिपोर्ट दी कि लगभग 2.45 बजे, पांचवें पाइप की स्थिति के दौरान, सुरंग में एक बड़ी दरार की आवाज सुनी गई और बचाव अभियान तुरंत रोक दिया गया था.

5वां दिन, 16 नवंबर- हाई-टेक्नोलॉजी वाली ड्रिलिंग मशीन को असेंबल और स्थापित किया जाता है. यह आधी रात के बाद काम करना प्रारम्भ कर देती है.

चौथा दिन, 15 नवंबर- पहली ड्रिलिंग मशीन के प्रदर्शन से असंतुष्ट, एनएचआईडीसीएल ने बचाव प्रयासों में तेजी लाने के लिए एक अत्याधुनिक अमेरिकी बरमा मशीन की मांग की थी, जिसे दिल्ली से हवाई मार्ग से लाया गया था.

तीसरा दिन, 14 नवंबर- होरिजेन्टल ड्रिलिंग के लिए बरमा मशीन की सहायता से मलबे के माध्यम से डालने के लिए 800 और 900 मिमी व्यास के टील पाइपों को सुरंग स्थल पर लाया गया. हालांकि, प्रयासों को तब झटका लगा, जब मशीन धंसने से मलबा गिरने लगा और दो श्रमिकों को हल्की चोटें आईं. जानकारों की एक टीम ने मिट्टी परीक्षण के लिए सुरंग और आसपास के क्षेत्रों का सर्वेक्षण प्रारम्भ किया. फंसे हुए मजदूरों को भोजन, पानी, ऑक्सीजन, बिजली और दवाओं की आपूर्ति की जा रही थी. वहीं उनमें से कुछ ने मतली और सिरदर्द की कम्पलेन की थी.

दूसरा दिन, 13 नवंबर- फंसे हुए मजदूरों से ऑक्सीजन की आपूर्ति करने वाली पाइप के माध्यम से संपर्क स्थापित किया गया और उनके सुरक्षित होने की सूचना दी गई. मुख्यमंत्री धामी के मौके का दौरा करने के बाद भी बचाव कोशिश जारी रहा. सुरंग के टूटे हुए हिस्से पर जमा मलबे को हटाने में अधिक प्रगति नहीं हुई. क्योंकि ऊपर से ताजा मलबा गिरता रहा.

पहला दिन, 12 नवंबर- दीपावली के दिन सुबह करीब 5.30 बजे भूस्खलन के बाद ब्रह्मखाल-यमुनोत्री राजमार्ग पर निर्माणाधीन सुरंग का कुछ हिस्सा ढह जाने से मजदूर फंस गए. जिला प्रशासन द्वारा बचाव कोशिश प्रारम्भ किए गए और फंसे हुए श्रमिकों को एयर-कंप्रेस्ड पाइप के माध्यम से ऑक्सीजन, बिजली और खाने की आपूर्ति करने की प्रबंध की गई. एनडीआरएफ, राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ), सीमा सड़क संगठन (बीआरओ), परियोजना निष्पादन एजेंसी एनएचआईडीसीएल और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) सहित कई एजेंसियां ​​बचाव प्रयासों में शामिल हुईं.

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