उत्तराखण्ड

रोटी-बेटी के रिश्ते के साथ आस्था से भी जोड़े रखता है नेपाल का ये मंदिर

उत्तराखंड राज्य का पिथौरागढ़ जिला नेपाल की सीमा से लगा हुआ है  यहां केवल सीमा ही लोगों को अलग करती है, बाकी यहां का रहन-सहन, सभ्यता, धार्मिक मान्यता, रोटी-बेटी का सम्बंध दोनों राष्ट्रों के लोगों को एकसूत्र में बांधने का कार्य करता है ऐसे ही दोनों राष्ट्रों की संस्कृति और धार्मिक महत्व रखने वाले नेपाल के मशहूर मंदिर त्रिपुरासुंदरी के बारे में आज हम बात कर रहें है जो है तो नेपाल में लेकिन इसकी आस्था का सैलाब पूरे पिथौरागढ़ जिले में है, जिसका प्रमाण यहां होने वाले विशेष आयोजन और नवरात्रि में देखने को मिलता है

दोनों राष्ट्रों की साझी संस्कृति का प्रतीक है त्रिपुरा सुंदरी
त्रिपुरासुंदरी में विराजमान मां भगवती का आशीर्वाद लेने पिथौरागढ़ से हजारों लोग पहुंचते हैं यहां नवरात्रों में विशेष पूजा का आयोजन होता है जिसका साक्षी नेपाल और हिंदुस्तान के लोग बनते हैं त्रिपुरा सुंदरी महज एक मंदिर ही नहीं बल्कि दोनों राष्ट्रों की साझी संस्कृति का प्रतीक भी है यहां के क्षेत्रीय निवासी और पुजारी गोपाल सिंह थापा ने जानकारी देते हुए कहा कि मां त्रिपुरा सुंदरी को यहां भगवती के रूप में पूजा जाता है जहां नवरात्रों के साथ ही अनेक शुभ अवसरों में विशेष पूजा के आयोजन में नेपाल और हिंदुस्तान के लोग बड़ी संख्या में पहुंचते हैं

युनेस्को की विश्व धरोहर में है शामिल
नेपाल का त्रिपुरा सुंदरी मंदिर यूनेस्को की विश्वधरोहर में शामिल है यहां शक्तिपीठ के रूप में भगवती विराजमान है, जिन्हें रणसैनी के नाम से भी जाना जाता है, जो पिथौरागढ़ के बॉर्डर पर बसे इलाकें झूलाघाट से 18 किलोमीटर की दूरी पर है यहां झूला पुल पार करके नेपाल से टैक्सी लेकर आराम से पहुंचा जा सकता है

मेले का आयोजन
नवरात्रों के अतिरिक्त यहां दीवाली के 7 दिन बाद 2 दिनों के मेले का आयोजन किया जाता है जो पश्चिमी नेपाल के सबसे बड़े मेले के रूप में मशहूर है जिसमें मां भगवती के डोले को सोने चाँदी से सजाकर मंदिर में लाया जाता है जिसके दर्शन करने लाखों लोग यहां पहुंचते है

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