बिहार

Holika Dahan 2024: ‘सम्मत’ की राख से यहां खेली जाती है होली

पूर्णिया पूरे विश्व में 24 मार्च की शाम को होलिका दहन होगा और उसके दूसरे दिन यानी 26 मार्च को होली मनायी जायेगी, लेकिन होलिका की चिता भूमि पर अगजा या सम्मत के साथ ही होली की आरंभ हो जाती है इस स्थान का अलग महत्व भी है और अलग परंपरा भी यहां आज भी अगजा (सम्मत) की राख से ही होली खेलने की परम्परा है यानी यहां होली रंगों का त्योहार नहीं बल्कि मसाने का त्योहार है जैसा कि हम सब जानते हैं कि होलिका राजा हिरण्यकश्यप की बहन थी, जो अपने भाई के कहने पर भतीजे प्रह्लाद को आग में जलाना चाहती थी, लेकिन हवा के झोंके से स्वयं जल गयी प्रह्लाद को जिंदा देख लोग खुशी से नाचने लगे और होलिका की चिता की राख एक दूसरे पर डालने लगे बोला जाता है कि इस तरह लोकपर्व होली की आरंभ हुई

हिरण्यकश्यप काल से जुड़े अवशेष हैं मौजूद

पुराणों के मुताबिक होलिका की चिता भूमि बिहार के पूर्णिया जिले में स्थित है बिहार के पूर्णिया जिले बनमनखी के सिकलीगढ़ धरहरा में आज भी हिरण्यकश्यप काल से जुड़े अवशेष बचे हैं सभी साक्ष्यों से यह प्रमाणित हो चुका है कि यह वही स्थल है, जहां होलिका दहन हुआ था इसी भूमि पर भक्त प्रह्लाद बाल- बाल बच गये थे तभी से इस तिथि पर होली मनायी जाती है बनमनखी में होलिका दहन महोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है आज भी यहां के लोग रंगों से नहीं, बल्कि राख से होली खेलते हैं

हिरण्यकश्यप की बहन थी होलिका

असुरराज हिरण्यकश्यप और उसकी पत्नी कयाधु के पुत्र प्रह्लाद जन्म से ही विष्णु भक्त थे इससे हिरण्यकश्यप उसे अपना दुश्मन समझने लगे थे अपने पुत्र को समाप्त करने के लिए हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका के साथ प्रह्लाद को अग्नि में जलाने की योजना बनायी होलिका के पास एक ऐसी चादर थी जिसपर आग का कोई असर नहीं पड़ सकता था योजना के मुताबिक हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को वही चादर लपेटकर प्रह्लाद को गोद में बैठाकर आग जला दी तभी तेज हवा चली और चादर होलिका के शरीर से हटकर प्रह्लाद के शरीर पर आ गिरा होलिका जल गयी और प्रह्लाद बच गया

नरसिंह ने किया था हिरण्यकश्यप का वध

इस जगह पर आज भी वह खंभा उपस्थित है, जिसके बारे में धारणा है कि इसी पत्थर के खंभे से ईश्वर नरसिंह ने अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया था जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर बनमनखी प्रखंड स्थित धरहरा गांव में एक प्राचीन मंदिर है ईश्वर नरसिंह के अवतार से जुड़ा ये खंभा कभी 400 एकड़ में फैला था, आज ये घटकर 100 एकड़ में ही सिमट गया है ईश्वर नरसिंह के अवतार से जुड़ा खंभा (माणिक्य स्तंभ) आज भी यहां उपस्थित है बोला जाता है कि इसे कई बार तोड़ने का कोशिश किया गया इससे ये टूटा तो नहीं, लेकिन ये स्तंभ झुक गया

हर मन्नत होती है पूरी

भगवान नरसिंह के इस मनोहारी मंदिर में ईश्वर ब्रह्मा, विष्णु और शंकर समेत 40 देवताओं की मूर्तियां स्थापित है नरसिंह अवतार के इस मंदिर का दर्शन करने दूर दूर से श्रद्धालु आते हैं उनका मानना है कि यहां आने से उनकी सभी मुरादें पूरी होती हैं इस संबंध में कमलेश्वरी देवी का बोलना है कि यहां सभी मन्नतें पूरी हो जाती हैं साथ ही होली के दिन इस मंदिर में धूड़खेल होली खेलने वालों की मुरादें सीधे ईश्वर नरसिंह के कानों तक पहुंचती है इस वजह से होली के दिन यहां लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ होली खेलने और ईश्वर नरसिंह के दर्शन के लिए जुटती है

होली के दिन जुटती है लाखों की भीड़

सिकलीगढ़ धरहरा की खासियत है कि यहां राख और मिट्टी से होली खेली जाती है क्षेत्रीय लोगों ने कहा कि यहां होलिका दहन के समय लाखों लोग मौजूद होते हैं और जमकर राख और मिट्टी से होली खेलते हैं होलिका दहन की परम्परा से जुड़ी पूर्णिया के इस ऐतिहासिक स्थल पर हर साल विदेशी सैलानी आते हैं और कई फिल्मों की शूटिंग भी यहां हो चुकी है

होगा राजकीय समारोह

फिलहाल, क्षेत्र के विधायक और बिहार गवर्नमेंट के पूर्व पर्यटन मंत्री कृष्ण कुमार ऋषि ने इस स्थल को पर्यटन स्थल का दर्जा दिलाया और होली के मौके पर राजकीय कार्यक्रम घोषित किया लेकिन घोषणा के अगले दो सालों तक कोविड-19 काल को लेकर राजकीय महोत्सव नहीं मनाया गया था इस बार होलिका दहन राजकीय कार्यक्रम के साथ मनाया जाएगा

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