आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आने से कैंसर रिसर्च में हुई आसानी
Cancer Screening Test: कैंसर दुनिया की सबसे खतरनाक रोंगों में से एक है। हर वर्ष एक करोड़ से अधिक लोग कैंसर के चलते मारे जाते हैं। यदि ठीक समय पर कैंसर का पता चल जाए तो रोग को समाप्त किया जा सकता है। यही वजह है कि कैंसर स्क्रीनिंग पर लगातार रिसर्च चलती रहती है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के आने से रिसर्चर्स को थोड़ी सरलता हो गई है। उन्होंने AI का इस्तेमाल करते हुए ऐसा टेस्ट ईजाद किया है जो मिनटों में कैंसर का पता लगा सकता है। सूखे खून की एक बूंद से तीन प्रमुख कैंसर का पता चल सकता है। शुरुआती प्रयोगों में, कुछ ही मिनटों के भीतर नतीजे सामने आ गए। वैज्ञानिकों ने पैंक्रियाटिक, गैस्ट्रिक और कोलोरेक्टल कैंसर की पहचान की। रिसर्चर्स के मुताबिक, खून में उपस्थित खास केमिकल्स की पहचान करके, इस टेस्ट ने बता दिया कि रोगी को कैंसर है या नहीं। वैज्ञानिकों ने तीन तरह के कैंसर रोगियों और नॉन-कैंसर वाले लोगों पर टेस्ट किया था।
कैंसर का यह ब्लड टेस्ट चीन के वैज्ञानिकों ने डेवलप किया है। उनके मुताबिक, नए टेस्ट से रोग का पता लगाने के लिए 0.05 मिलीलीटर से भी कम खून की आवश्यकता पड़ती है। उनकी खोज के नतीजे Nature Sustainability जर्नल में 22 अप्रैल को छपे हैं।
कैंसर का नया टेस्ट कैसे काम करता है?
कैंसर का यह नया टेस्ट मशीन लर्निंग का इस्तेमाल करता है। खून के सैंपल्स में मेटाबॉलिज्म के बाई-प्रोडक्ट्स जिन्हें मेटाबोलाइट्स कहते हैं, का एनालिसिस किया जाता है। ये मेटाबोलाइट्स खून के तरल हिस्से – सीरम में पाए जाते हैं। टेस्ट इन्हें ‘बायोमार्कर’ की तरह यूज करता है और शरीर में कैंसर की संभावित मौजूदगी जाहिर करता है। खून में उपस्थित बायोमार्कर्स की स्क्रीनिंग से शुरुआती स्टेज में कैंसर का पता लगाया जा सकता है। शुरुआती स्टेज में बचने की आसार अधिक होती है।
दुनिया के तीन सबसे खतरनाक कैंसरों में अग्नाशय, कोलोरेक्टल और गैस्ट्रिक कैंसर शामिल हैं। फिर भी इन तीनों की पहचान करने वाला कोई स्टैंडअलोन टेस्ट मौजूद नहीं है। डॉक्टर्स अभी इमेजिंग या सर्जिकल प्रोसीजर के जरिए कैंसर वाले टिशू का पता लगाते हैं।
लिक्विड खून से बेहतर है ड्राई सीरम का टेस्ट
तरल खून की तुलना में सूखे सीरम को कलेक्ट, स्टोर और ट्रांसपोर्ट करना न केवल सरल है, बल्कि कम खर्चीला भी है। वैज्ञानिकों ने रिसर्च में पाया कि लिक्विड ब्लड टेस्ट के मुकाबले सूखे खून की टेस्टिंग ने बेहतर नतीजे दिए। एक प्रयोग में, सूखे खून के धब्बों का यूज करने से उन्हें अग्नाशय कैंसर के 81.2% मामलों का पता लगाने में सहायता मिली। जबकि तरल खून के नमूनों का यूज करने पर 76.8% मुद्दे सामने आए। हालांकि, बाजार में कैंसर का यह नया टेस्ट मौजूद होने में अभी खासा समय लगेगा। वैज्ञानिकों का बोलना है कि कैंसर स्क्रीनिंग में बड़े पैमाने पर इस टेस्ट के इस्तेमाल से काफी फर्क पड़ सकता है। एक अनुमान में चीनी वैज्ञानिकों ने बोला कि कैंसर के अज्ञात मामलों में 20% से 50% की गिरावट देखने को मिल सकती है।