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अरावली के इन खूबसूरत नजारों को देखकर हो जाएंगे रोमांचित

राजस्थान न्यूज डेस्क !!! साल का वर्षा ऋतु ही हिंदुस्तान की अरावली पर्वत श्रृंखला को हरियाली से सुशोभित करता है. जब वर्षा होती है तो दूर पहाड़ों की चोटियाँ बादलों से घिरी हुई दिखाई देती हैं. ऐसा महसूस होता है जैसे पहाड़ बदल रहे हैं. उदयपुर में अपने कार्यकाल के दौरान मुझे कई बार बारिश के दौरान विशाल अरावली पर्वतमाला की मानसूनी सुंदरता को देखने का अवसर मिला. यदि आप किसी गाड़ी से पहाड़ों के बीच से जा रहे हैं और बारिश हो रही है तो आप अरावली के इन खूबसूरत नजारों को देखकर रोमांचित हो जाएंगे और अपने मोबाइल से फोटोज़ खींचने से स्वयं को रोक नहीं पाएंगे.

 

अरावली हिंदुस्तान की भौगोलिक संरचना में सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला है जो लगभग 870 मिलियन साल पुरानी है. हिंदुस्तान के राजस्थान, हरियाणा और गुजरात के साथ-साथ पाक के पंजाब और सिंध में स्थित है. अरावली पर्वत श्रृंखला को क्षेत्रीय स्तर पर ‘मेवात’ भी बोला जाता है. 560 किमी लंबी इस श्रृंखला की कुछ चट्टानी पहाड़ियाँ राजस्थान राज्य के उत्तरपूर्वी क्षेत्र से गुजरती हुई दिल्ली के दक्षिणी भाग तक चली गई हैं. इस श्रेणी का उत्तरी किनारा हरियाणा से दिल्ली सीमा तक फैला हुआ है. इसका दक्षिणी छोर अहमदाबाद के निकट पालनपुर तक है. यह पर्वत प्राचीन हिंदुस्तान के सात सप्तकुल पर्वतों में से एक है. इसे हिंदू कुश पर्वत की तरह पारियात्र या पारिजात पर्वत भी बोला जाता है, क्योंकि यहां पारिजात वृक्ष पाया जाता है.

पर्वतारोहियों की पसंदीदा जगह

राजस्थान की अरावली पर्वतमाला पर्वतारोहियों की पसंदीदा स्थान है. पर्वतीय क्षेत्र में वन, वनस्पति, वन्य जीवन, झीलें, नदियाँ और घास के मैदान, खनिज भंडार के साथ-साथ कई पर्यटक आकर्षण अरावली पर्वत श्रृंखला को बहुत खास बनाते हैं. अरावली पर्वतमाला की सबसे ऊँची चोटी, ‘गुरु शिखर’, माउंट आबू में 5,653 फीट (1,723 मीटर) ऊँची है. यहां सेर चोटी 1597 मीटर, अचलगढ़ चोटी 1380 मीटर, देलवाड़ा चोटी 1442 मीटर और आबू चोटी 1295 मीटर है. इसकी चोटियाँ पर्यटकों को आकर्षित करती हैं. इन्हें देखने के लिए देशभर से लोग आते हैं. माउंट आबू, कुंभलगढ़ और रणकपुर के जैन मंदिर भी विशेष रूप से मशहूर हैं. अरावली के उत्तर-पश्चिम में जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर और बीकानेर के क्षेत्र हैं, जो इसकी हरियाली को बाधित करते हैं. अरावली के उत्तरी क्षेत्र में अनेक पवित्र एवं भव्य जगह हैं. यह बहुत विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ है. अरावली पर्वत श्रृंखला राज्य के 12 जिलों में फैली हुई है क्योंकि इसका एक भाग बूंदी जिले में भी आता है.

अरावली पर्वत एवं सिरोही

सिरोही जिला अरावली पहाड़ियों के दक्षिण-पश्चिमी छोर पर घने जंगलों के बीच स्थित राजस्थान और गुजरात का एक सीमावर्ती जिला है. माउंट आबू हिंदुस्तान का सबसे पुराना पर्वत है. यह क्षेत्र मौर्य, क्षत्रप, हूण, परमार, राठौड़, चौहान, गुहिल आदि शासकों के अधीन था. प्राचीन काल में इसे अर्बुदा प्रदेश के नाम से जाना जाता था. देवड़ा राजा रायमल के पुत्र शिवभान ने सरनावा पहाड़ी पर एक किला स्थापित किया और 1405 ई में. मैंने शिवपुरी नगर बसाया जो आज सिरोही के नाम से जाना जाता है.

कर्नल जेम्स टॉड के मुताबिक चंद्रावती नगर में 999 मंदिर थे. मंदिरों की अधिकता के कारण इसे देव नगर बोला जाता है. उनकी कला देखते ही बनती है इसका प्राचीन नाम ‘शिवपुरी’ था. सिरोही में आबू पर्वत राजस्थान की सबसे ऊँची चोटी गुरु शिखर 1722 मीटर और दूसरी सबसे ऊँची चोटी 1597 मीटर ‘सेर’ है. माउंट आबू पर्वत, जहां ऋषि-मुनियों की तपोस्थली, योद्धाओं, धर्म, कला और संस्कृति की तपोस्थली, संगमरमर, ग्रेनाइट, टंगस्टन, कैल्साइट, चूना पत्थर और वोलास्टोनाइट खनिजों का घर है. इस पहाड़ी जिले की 31 फीसदी भूमि पर वन हैं.

सालर, बबूल, ढोकरा, सिरस, तेंदू, खैर, कुमठा, बहेड़ा और बांस के पेड़ पाए जाते हैं. माउंट आबू अभयारण्य यहीं है. इसमें तेंदुआ, भालू, जंगली सूअर, लंगूर, भेड़िया, लोमड़ी, गीदड़, सियार, खरगोश, जंगली मुर्गा, जंगली बिल्ली, बिज्जू, तीतर, बटेर और बुलबुल आदि प्रमुख रूप से पाए जाते हैं. जिले में आदिवासी गरासिया की रंगीन संस्कृति उनकी उज्ज्वल वेशभूषा, गीतों और नृत्यों से दिखाई देती है. स्त्रियों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाने वाला वाला नृत्य विशेष रूप से लोकप्रिय है. जीरावल में लगभग 2000 साल पुराना जैन मंदिर भी दर्शनीय है. सारणेश्वर मंदिर, मीर पुर मंदिर और सर्वधर्म मंदिर भी सिरोही के अन्य मशहूर मंदिर हैं.

माउंट आबू

अरावली पर्वत श्रृंखला के सिरोही जिले में माउंट आबू पर्वत पर्यटन की दृष्टि से राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है. माउंट आबू का नाम अर्बुदा सांप के नाम पर पड़ा जिसने ईश्वर शिव के बैल नंदी की रक्षा की थी. रोमांचक रास्ते, मनमोहक झीलें, उत्तम पिकनिक स्थल और ठंडा मौसम, जो राजस्थान के अन्य हिस्सों से अलग है, माउंट आबू को एक पसंदीदा पर्यटन स्थल बनाते हैं. हनीमून पॉइंट और सनसेट पॉइंट लोकप्रिय हैं.

अचलगढ़

अचलगढ़ अरावली पर्वतमाला की ऊंची चोटी पर स्थित एक प्राचीन किला है. मेवाड़ के महाराणा कुम्भा ने इस प्राचीन किले के खंडहरों पर एक नया किला बनवाया जिसे अचलगढ़ के नाम से जाना जाता है. अचलगढ़ मजबूत प्राचीरों और विशाल मीनारों के साथ किले की वास्तुकला का एक अच्छा उदाहरण है. किले के अंदर कुंभा का शाही महल, उनकी ओखा रानी का महल, अनाज के कोठे (खाद्य भंडार), सैनिकों के आवास, विशाल पानी के टैंक, अतुल जल से भरी सावन-भादो झील, परमारों द्वारा निर्मित खतरे की चेतावनी देने वाली मीनारें आदि हैं. खंडहर बहुत बढ़िया हैं

नक्की झील

नक्की झील पहाड़ों के बीच स्थित एक बहुत खूबसूरत झील है. यह हिंदुस्तान की एकमात्र कृत्रिम झील है जो समुद्र तल से 1200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. ऐसा माना जाता है कि इस झील का निर्माण देवताओं ने अपने नाखूनों से किया था, इसलिए इसका नाम नक्की झील पड़ा. झील में नौकायन की सुविधा भी मौजूद है. नक्की झील के पास ही रघुनाथजी का मंदिर भी है.

देलवाड़ा के मंदिर

11वीं और 13वीं शताब्दी के बीच संगमरमर से निर्मित नक्काशीदार जैन मंदिरों के समूह में पांच मंदिर बने हैं. इनमें दो मंदिर विशाल एवं भव्य हैं तथा तीन मंदिर उनके पूरक मंदिर हैं. सबसे बड़ा विमल वसाही मंदिर प्रथम जैन तीर्थंकर ईश्वर आदिनाथ को समर्पित है. इस मंदिर का निर्माण 1031 ई में गुजरात के चालुक्त राजा भीमदेव के मंत्री और सेनापति विमल शाह ने करवाया था. जब मेरी पुत्र प्राप्ति की ख़्वाहिश पूरी हुई तो मैंने यह करवाया. यह मंदिर लगभग 98 फीट लंबा और 42 फीट चौड़ा है.

मंदिर के स्तंभों, दीवारों, तोरणों, छतों और गुंबदों की बेहतरीन नक्काशी और मूर्तिकला आश्चर्यजनक है. मंदिर में 57 तीर्थस्थल स्थापित हैं जिनमें तीर्थंकरों और अन्य देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित हैं. दूसरा बड़ा लून वसाही मंदिर भी कला का उत्कृष्ट नमूना है. इस मंदिर का निर्माण सोलंकी शासक तेजपाल और वस्तुपाल ने करवाया था. मंदिर के आकार का मंडप का गुंबद विमल वसाही के गुंबद से बड़ा और सुन्दर है. गुंबद के किनारों पर गोलाकार पट्टियों में बैठी हुई मुद्रा में 72 तीर्थंकरों की छवियां हैं. मंदिर के गलियारों में तीर्थंकर नेमिनाथ के जीवन की जरूरी घटनाओं को पत्थर पर खूबसूरती से उकेरा गया है. इन मंदिरों के साथ पीतलहर मंदिर और चतुर्भुज मंदिर भी दर्शनीय हैं. मंदिर माउंट आबू को एक सुंदर जैन तीर्थ बनाते हैं.

अर्बुदा देवी मंदिर

आबू की पहाड़ियों पर स्थित मां अर्बुदा देवी के मंदिर के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह सती (पार्वती) के 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां सती के होंठ गिरे थे. माउंट आबू से 3 किमी दूर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 365 सीढ़ियां बनी हैं. पूरे रास्ते में आसपास का प्राकृतिक दृश्य बहुत सुंदर है. माता का मंदिर एक प्राकृतिक गुफा के रूप में बना है, जहां माता की ज्वाला लगातार जलती रहती है. भक्तों को गुफा के संकरे रास्ते से होकर बैठना पड़ता है.

गुरु शिखर

माउंट आबू से 15 किमी दूर गुरु शिखर अरावली पर्वत श्रृंखला की सबसे ऊंची चोटी है, जिसके उत्तर-पश्चिम में सफेद रंग की इमारत में गुरु दत्तात्रेय मंदिर है. पास ही रामानंद के पैरों के निशान बने हुए हैं. शिखर पर एक बहुत बढ़िया पीतल की घड़ी लगी हुई है. यहां से अबू का का पूरा दृश्य मनमोहक नजर आता है.

अचलेश्वर महादेव

माउंट आबू पर अचलगढ़ किले के पास स्थित अचलेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर हिंदुस्तान का एकमात्र मंदिर है जहां शिव के अंगूठे की पूजा की जाती है. मंदिर में पंच धातु से बनी नंदी की विशाल मूर्ति, जिसके एक तरफ पैर के अंगूठे का निशान है, गर्भगृह में एक शिवलिंग है, जिसे स्वयंभू शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है. इसे ईश्वर शिव का दाहिना अंगूठा माना जाता है. गर्भगृह के बाहर वराह, नरसिम्हा, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम, बुद्ध और कलंगी अवतारों की काले पत्थर की भव्य मूर्तियाँ हैं. परिसर में द्वारिकाधीश का एक मंदिर भी स्थित है.

सरकारी संग्रहालय

संग्रहालय में पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों के हथियार, संगीत वाद्ययंत्र, स्त्रियों के गहने और कपड़े प्रदर्शित किए गए हैं. संग्रहालय के मुख्य आकर्षणों में 6वीं से 12वीं शताब्दी की देवदासियों या नर्तकियों की मूर्तियां, चक्रबाहु शिव की एक मूर्ति, 404 प्राचीन मूर्तियों का संग्रह और विष कन्या की एक मूर्ति शामिल हैं. यातायात की दृष्टि से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 14 एवं 27 सिरोही जिले से होकर गुजरते हैं. रूट नंबर 27 पिंडवाड़ा से शिवपुरी तक जाता है. आबू रोड रेलवे स्टेशन है. राष्ट्र की राजधानी दिल्ली के साथ-साथ हिंदुस्तान और राजस्थान के सभी प्रमुख जगह बस सेवा से जुड़े हुए हैं. गुजरात और मध्य प्रदेश की बसें भी यहाँ मौजूद हैं.

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