बंगाल में रामनवमी जुलूस के लिए हाई कोर्ट से लेनी पड़ी इजाजत…
कोलकाता: कोलकाता हाई कोर्ट ने आज मंगलवार (16 अप्रैल) को दो हिंदू संगठनों, अंजनी पुत्र सेना और विश्व हिंदू परिषद (VHP) को 17 अप्रैल को राम नवमी के अवसर पर हावड़ा, बंगाल में जुलूस निकालने की अनुमति दे दी है. कोलकाता हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति जय सेन गुप्ता ने जुलूस को अपने पारंपरिक मार्ग का पालन करने की अनुमति दी, जो पिछले 15 सालों से चल रहा है.
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले वर्ष शोभा यात्रा के दौरान हावड़ा मैदान में अत्याचार भड़क उठी थी, जिसके बाद ममता बनर्जी गवर्नमेंट को जुलूस दूसरे रास्ते से निकालने के लिए बोला था. हालांकि इस निर्णय से असंतुष्ट हिंदू संगठनों ने न्यायालय में अपील की, क्योंकि जुलुस पिछले 15 सालों से उसी रुट से निकल रहा था. अब न्यायालय ने इस शर्त के साथ जुलूस की इजाजत दे दी है कि इसमें 200 से अधिक लोग शामिल नहीं होंगे और किसी भी समुदाय को निशाना बनाते हुए कोई भड़काऊ बयान या नारे नहीं लगाए जाएंगे.
अदालत ने ममता गवर्नमेंट को रामनवमी जुलूस के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है, यदि जरूरी हो तो राज्य पुलिस के साथ-साथ केंद्रीय बलों की तैनाती की भी अनुमति दी है. उल्लेखनीय है कि 2023 में रामनवमी के मौके पर पश्चिम बंगाल के विभिन्न हिस्सों में अत्याचार भड़क उठी थी, जिससे बड़े पैमाने पर अशांति फैल गई थी. घटना के बाद, कोलकाता हाई कोर्ट ने मुद्दे को राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंप दिया, जिसके परिणामस्वरूप अत्याचार में शामिल 11 व्यक्तियों को अरैस्ट किया गया था.
पिछले वर्ष भी बंगाल में रामनवमी पर हुआ था हमला:-
बता दें कि, अप्रैल 2023 में रामनवमी पर्व पर निकाले गए जुलुस पर भी धावा हुआ था. बंगाल पुलिस द्वारा निर्धारित किए गए रुट से जुलुस निकाल रहे श्रद्धालुओं पर छतों से पत्थर, बोत्तलें फेंकी गई थी. इस हमले के बाद पटना हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस नरसिम्हा रेड्डी के नेतृत्व में मानवाधिकार संगठन की 6 सदस्यीय टीम अत्याचार की सच्चाई का पता लगाने बंगाल पहुंची थी, लेकिन ममता बनर्जी की पुलिस ने उन्हें दंगा प्रभावित क्षेत्र में जाने ही नहीं दिया. जिसके बाद फैक्ट फाइंडिंग टीम ने दंगा पीड़ित लोगों से स्वयं सामने आकर अपनी बात रखने को बोला और उस आधार पर रिपोर्ट तैयार की.
रिपोर्ट में बोला गया था कि, बंगाल में रामनवमी पर हुई अत्याचार सुनियोजित थी. इसके लिए जानबूझकर लोगों को भड़काया गया और दंगे करवाए गए. वहीं, इस मुद्दे की’ सुनवाई करते हुए कोलकाता उच्च न्यायालय ने बोला था कि, ”रिपोर्ट्स से पता चलता है कि अत्याचार के लिए पहले से ही तैयारी कर ली गई थी. इल्जाम है कि लोगों ने छतों से पत्थर फेंके थे. जाहिर है कि 10-15 मिनट के अंदर तो पत्थर छत पर नहीं लाए जा सकते, वो पहले से जमा किए गए थे, धावा करने के लिए. यह खुफिया तंत्र की नाकामी है.” कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायधीश ने यह भी बोला था कि, ‘पिछले 4-5 महीनों में हाई कोर्ट ने बंगाल गवर्नमेंट को 8 आदेश भेजे हैं. ये सभी मुद्दे धार्मिक आयोजनों के दौरान हुई अत्याचार से जुड़े हुए हैं. क्या यह कुछ और नहीं दर्शाता है? मैं बीते 14 सालों से न्यायधीश हूँ. मगर अपने पूरे करियर में ऐसा कभी नहीं देखा.‘
वहीं, अत्याचार के बाद में जिन श्रद्धालुओं पर धावा हुआ, उन्ही पर इल्जाम लगाकर कह दिया गया कि, उन्होंने आपत्तिजनक नारे लगाए थे, मुसलमान इलाकों में घुसे थे, जिससे अत्याचार हुई. हालाँकि, रुट तो बंगाल पुलिस ने ही तय किया था, और वो कौन से आपत्तिजनक नारे थे, जिससे लोग भड़के, ये बंगाल पुलिस, न्यायालय में नहीं बता पाई. हो सकता है कि, ‘जय श्री राम’ के नारे को ही आपत्तिजनक मान लिया गया हो, क्योंकि कई बार स्वयं मुख्यमंत्री ममता भी यह नारा सुनकर मंच छोड़ चुकी हैं और रामनवमी के जुलुस में यह नारा तो लगना स्वाभाविक है. वहीं, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अभी से कह दिया है कि, रामनवमी पर बीजेपी दंगा कराएगी, मतलब यदि त्यौहार पर कोई जुलुस निकला और उस पर पिछली बार की तरह पथराव हुआ, तो दंगाई तो आराम से बच जाएंगे, क्योंकि मुख्यमंत्री ममता सीधे भाजपा का नाम ले देंगी.